' जिनकी कथनी और करनी में तनिक भी अन्तर न हो ऐसे महामानव संसार में बहुत कम होते हैं '
टालस्टाय का मत सदैव यही रहा कि जिस बात को हम श्रेष्ठ मानते हैं , दूसरों को हम जिसकी प्रेरणा देते हैं , उसका पालन स्वयं अवश्य करना चाहिए । '
उन्होंने बड़े स्पष्ट रूप में कहा था कि बौद्धिक कार्य करने वालों को भी प्रतिदिन नियम से खेती , कारीगरी आदि का कुछ उपयोगी शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए । इससे एक ओर जहाँ हम ईश्वरीय आदेश का पालन कर सकेंगे कि " मनुष्य को अपने पसीने की रोटी खानी चाहिए " वहां इस प्रकार का श्रम हमारे स्वास्थ्य और मानसिक प्रसन्नता की रक्षा करने वाला भी होगा । "
उन्होंने स्वयं इसी सिद्धांत के अनुसार जीवन यापन किया और और उनकी प्रेरणा से और भी अनेक बड़े विद्वानों तथा उच्च पदाधिकारियों ने इसका अनुकरण किया । सामाजिक क्षेत्र में इसका जादू का सा प्रभाव हुआ । काउंट , राजकुमार , उच्च वंशीय धनी , कॉलेज के अध्यापक आदि उनके चारों ओर एकत्रित होने लगे । फावड़े , कुदालियाँ हाथों में लिए वे सब खेती के कार्य में रस और आनंद लेने लगे । गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में फीनिक्स स्थित ' टालस्टाय फर्म ' इसी आदर्श पर स्थापित किया था और उसमे कितने ही सुशिक्षित भारतीय और कई यूरोपियन भी कृषि सम्बन्धी तथा अन्य शारीरिक श्रम के कार्य करते थे ।
टालस्टाय का मत सदैव यही रहा कि जिस बात को हम श्रेष्ठ मानते हैं , दूसरों को हम जिसकी प्रेरणा देते हैं , उसका पालन स्वयं अवश्य करना चाहिए । '
उन्होंने बड़े स्पष्ट रूप में कहा था कि बौद्धिक कार्य करने वालों को भी प्रतिदिन नियम से खेती , कारीगरी आदि का कुछ उपयोगी शारीरिक श्रम अवश्य करना चाहिए । इससे एक ओर जहाँ हम ईश्वरीय आदेश का पालन कर सकेंगे कि " मनुष्य को अपने पसीने की रोटी खानी चाहिए " वहां इस प्रकार का श्रम हमारे स्वास्थ्य और मानसिक प्रसन्नता की रक्षा करने वाला भी होगा । "
उन्होंने स्वयं इसी सिद्धांत के अनुसार जीवन यापन किया और और उनकी प्रेरणा से और भी अनेक बड़े विद्वानों तथा उच्च पदाधिकारियों ने इसका अनुकरण किया । सामाजिक क्षेत्र में इसका जादू का सा प्रभाव हुआ । काउंट , राजकुमार , उच्च वंशीय धनी , कॉलेज के अध्यापक आदि उनके चारों ओर एकत्रित होने लगे । फावड़े , कुदालियाँ हाथों में लिए वे सब खेती के कार्य में रस और आनंद लेने लगे । गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में फीनिक्स स्थित ' टालस्टाय फर्म ' इसी आदर्श पर स्थापित किया था और उसमे कितने ही सुशिक्षित भारतीय और कई यूरोपियन भी कृषि सम्बन्धी तथा अन्य शारीरिक श्रम के कार्य करते थे ।
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