समर्थ गुरु का मुख्य उद्देश्य अपने राष्ट्र को सशक्त और सुद्रढ़ बनाना था , इसलिए उन्होंने धर्म के साथ लोगों को राजनीति का भी उपदेश दिया । समर्थ गुरु ने अपने अनुयायियों को उस राजनीति की शिक्षा दी जो विवेक , सूझ - बूझ और सावधानी पर आधारित होती है । उन्होंने कहा ------ " सांसारिक व्यवहार में भी हमको अकारण किसी का अहित नहीं करना चाहिए , यथा संभव समझौते तथा मेल - मिलाप की नीति से ही काम लेना चाहिए । लड़ना तभी चाहिए जब कोई नीच या स्वार्थी व्यक्ति दुष्टता करने पर उतारू हो जाये । "
छत्रपति शिवाजी ने इसी नीति पर चलकर महाराष्ट्र में अदभुत एकता और संगठन शक्ति उत्पन्न कर दी और औरंगजेब जैसे साम्राज्यवादी के छक्के छुड़ा दिए । समर्थ गुरु का कहना था ---- " देश में अकारण अशान्ति या रक्तपात की स्थिति उत्पन्न करना श्रेष्ठ नीति नहीं है । महात्मा ईसा जैसे सन्त पुरुष भी यही कह गये हैं कि --" जो तलवार की धार पर रहते हैं उनका अन्त भी तलवार से ही होता है l " इसलिए सच्ची राजनीति वही है जिसमे दुष्टों के दमन के साथ शिष्ट व्यक्तियों के रक्षण और पालन का पूरा - पूरा ध्यान रखा जाये l
उनका कहना था राजनीतिक चालें अवश्य चलनी चाहिए , पर इस तरह कि किसी को उनका पता न चले l लोगों की अच्छी तरह परख रखनी चाहिए और राजनीतिक चालों से उनका अभिमान नष्ट कर देना चाहिए ।
छत्रपति शिवाजी ने इसी नीति पर चलकर महाराष्ट्र में अदभुत एकता और संगठन शक्ति उत्पन्न कर दी और औरंगजेब जैसे साम्राज्यवादी के छक्के छुड़ा दिए । समर्थ गुरु का कहना था ---- " देश में अकारण अशान्ति या रक्तपात की स्थिति उत्पन्न करना श्रेष्ठ नीति नहीं है । महात्मा ईसा जैसे सन्त पुरुष भी यही कह गये हैं कि --" जो तलवार की धार पर रहते हैं उनका अन्त भी तलवार से ही होता है l " इसलिए सच्ची राजनीति वही है जिसमे दुष्टों के दमन के साथ शिष्ट व्यक्तियों के रक्षण और पालन का पूरा - पूरा ध्यान रखा जाये l
उनका कहना था राजनीतिक चालें अवश्य चलनी चाहिए , पर इस तरह कि किसी को उनका पता न चले l लोगों की अच्छी तरह परख रखनी चाहिए और राजनीतिक चालों से उनका अभिमान नष्ट कर देना चाहिए ।
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