समर्थ गुरु रामदास की अखंड विद्वता और तेजोमय व्यक्तित्व की कीर्ति सुनने के बाद महाराज शिवाजी उनसे मिलने को आतुर रहने लगे । यह समाचार जब समर्थ गुरु को मिला तो उन्होंने शिवाजी के नाम लम्बा पात्र लिखा और उनका उत्साह वर्द्धन किया । उन्होंने लिखा ------
" हो सकता है तुम अपने राज्य की सीमित भूमि और गिने - चुने साधनों को देखकर यह समझो कि इतने सीमित साधनों द्वारा यवनों के इतने व्यापक अत्याचार को किस प्रकार रोक सकता हूँ । तुम्हारा यह सोचना उचित न होगा क्योंकि मनुष्य की शक्ति साधनों में नहीं उसकी आत्मा में होती है । जिसे अपनी आत्मा में विश्वास है , मन में देशोद्धार की सच्ची लगन है उसके कर्तव्य - पथ पर कदम रखते ही साधन स्वयं एकत्र होने लगते हैं । अपनी आत्मा का जागरण करो , मन को बलवान बनाओ और उद्धार कार्य में एकनिष्ठ होकर लग जाओ , तुमको अवश्य सफलता प्राप्त होगी " अत्याचारी की शक्ति क्षणिक होती है । उसे देखकर कभी भयभीत नहीं होना चाहिए अत्याचारी प्रत्यक्ष रूप में निरपराधों पर तलवार चलाता है लेकिन परोक्ष में अपनी ही जड़ें काटारता है l अत्याचारी से बढ़ कर कोई कायर इस संसार में नहीं l निष्काम बुद्धि से कर्तव्य -पालन का पालन करी । "
" हो सकता है तुम अपने राज्य की सीमित भूमि और गिने - चुने साधनों को देखकर यह समझो कि इतने सीमित साधनों द्वारा यवनों के इतने व्यापक अत्याचार को किस प्रकार रोक सकता हूँ । तुम्हारा यह सोचना उचित न होगा क्योंकि मनुष्य की शक्ति साधनों में नहीं उसकी आत्मा में होती है । जिसे अपनी आत्मा में विश्वास है , मन में देशोद्धार की सच्ची लगन है उसके कर्तव्य - पथ पर कदम रखते ही साधन स्वयं एकत्र होने लगते हैं । अपनी आत्मा का जागरण करो , मन को बलवान बनाओ और उद्धार कार्य में एकनिष्ठ होकर लग जाओ , तुमको अवश्य सफलता प्राप्त होगी " अत्याचारी की शक्ति क्षणिक होती है । उसे देखकर कभी भयभीत नहीं होना चाहिए अत्याचारी प्रत्यक्ष रूप में निरपराधों पर तलवार चलाता है लेकिन परोक्ष में अपनी ही जड़ें काटारता है l अत्याचारी से बढ़ कर कोई कायर इस संसार में नहीं l निष्काम बुद्धि से कर्तव्य -पालन का पालन करी । "
No comments:
Post a Comment