' सेवा तथा सच्ची सदभावना में दैवी शक्ति होती है जिसे कोई कागावा जैसा तपस्वी बनकर प्राप्त कर सकता है । ' जन - कल्याण की सच्ची सदभावना से किये हुए प्रयत्न कभी विफल नहीं जाते ।
कागावा समाज -सेवा के लिए जापान की एक बस्ती ' शिंकावा ' में रहने लगे , ' शिंकावा ' को उन दिनों बस्ती कहने की अपेक्षा नरक का एक जीता -जगता कोना कहना अधिक उपयुक्त होगा । कागावा के प्रयासों से बस्ती में सुधार हुआ , लोग अपने शरीर , वस्त्र , घर , गली सबको स्वच्छ रखने लगे । बहुत से शराबियों , जुआरियों ने अपने व्यसन छोड़ दिए , वेश्याओं में से बहुतों ने कारखानों में नौकरी और अन्य प्रकार की मजदूरी द्वारा अपना जीवन - यापन शुरू किया ।
किन्तु यह सब इतनी सरलता पूर्वक नहीं हुआ । इसके लिए कागावा और उनकी पत्नी को बहुत यातना व तिरस्कार सहना पड़ा । बस्ती के धूर्त लोग , शराब व अफीम बेचने वाले तथा वेश्याओं के दलाल सबके सब कागावा से नाराज हो गये और न केवल उन दोनों को पीटा बल्कि मारने की भी कोशिश की । पर वे देवोपम दम्पति सत्कर्मों में लगे रहे , उन्होंने मान - अपमान और मृत्यु तक की परवाह नहीं की । वेश्याओं को सत्पथ का उपदेश करते हुए श्रीमती कागावा को एक चकलेदार ने इतना मारा कि वे बेचारी लहूलुहान होकर बेहोश हो गईं , फिर भी वे अपने सत्कर्म में लगीं रहीं ।
एक बार एक बदमाश ने दीवाल में पिस्तौल की गोली धंसाकर कागावा को धमकाया और शराब पीने के लिए पैसे मांगे । कागावा ने साफ़ कह दिया --- तुम मुझे गोली मार दो, पर मैं तुम्हे शराब जैसी दुष्ट चीज के लिए पैसे नहीं दूंगा , शराब से तुम्हारी सेहत खराब होगी , तुम्हारी अपराध वृति बढ़ेगी , तुम व्यभिचार के लिए प्रेरित होगे । शराब के लिए पैसे देकर मैं पाप नहीं करूँगा । मेरा ध्येय लोगों को बुराई से अच्छाई की ओर लाना है ।
' यदि तुम स्वास्थ्यदायक चीज खाना चाहो , घर में बच्चों के लिए कुछ ले जाना चाहो तो मैं तुम्हे अभी पैसे दे सकता हूँ । कागावा ने उसकी ओर कुछ रूपये बढ़ाते हुए कहा --- तुम हामी भरो यह रुपया किसी खराब काम में खर्च नहीं करोगे , इन्हें किसी अच्छे काम में खर्च करना ।
वह बदमाश बड़ी देर तक कागावा का मुंह देखता रहा और सोचता रहा --- क्या संसार में ऐसे अच्छे आदमी भी रहते हैं जो मौत का सन्देश लिए खड़े व्यक्ति का भी हित तथा कल्याण चाहते हैं , उसके प्रति सदभावना रखते हैं । मर जाने को तैयार हैं पर गलत बात को प्रोत्साहित करने को तैयार नहीं । उसने पिस्तौल फेंक दी और कहा ---- देवता ! आज से मैं भला आदमी हो गया , अब कभी कोई अपराध नहीं करूँगा । परोपकारी कागावा के प्रभाव से बदमाशों का सरदार बदल गया और फिर तब से बस्ती में बदमाशों का कोई उपद्रव नहीं हुआ ।
कागावा समाज -सेवा के लिए जापान की एक बस्ती ' शिंकावा ' में रहने लगे , ' शिंकावा ' को उन दिनों बस्ती कहने की अपेक्षा नरक का एक जीता -जगता कोना कहना अधिक उपयुक्त होगा । कागावा के प्रयासों से बस्ती में सुधार हुआ , लोग अपने शरीर , वस्त्र , घर , गली सबको स्वच्छ रखने लगे । बहुत से शराबियों , जुआरियों ने अपने व्यसन छोड़ दिए , वेश्याओं में से बहुतों ने कारखानों में नौकरी और अन्य प्रकार की मजदूरी द्वारा अपना जीवन - यापन शुरू किया ।
किन्तु यह सब इतनी सरलता पूर्वक नहीं हुआ । इसके लिए कागावा और उनकी पत्नी को बहुत यातना व तिरस्कार सहना पड़ा । बस्ती के धूर्त लोग , शराब व अफीम बेचने वाले तथा वेश्याओं के दलाल सबके सब कागावा से नाराज हो गये और न केवल उन दोनों को पीटा बल्कि मारने की भी कोशिश की । पर वे देवोपम दम्पति सत्कर्मों में लगे रहे , उन्होंने मान - अपमान और मृत्यु तक की परवाह नहीं की । वेश्याओं को सत्पथ का उपदेश करते हुए श्रीमती कागावा को एक चकलेदार ने इतना मारा कि वे बेचारी लहूलुहान होकर बेहोश हो गईं , फिर भी वे अपने सत्कर्म में लगीं रहीं ।
एक बार एक बदमाश ने दीवाल में पिस्तौल की गोली धंसाकर कागावा को धमकाया और शराब पीने के लिए पैसे मांगे । कागावा ने साफ़ कह दिया --- तुम मुझे गोली मार दो, पर मैं तुम्हे शराब जैसी दुष्ट चीज के लिए पैसे नहीं दूंगा , शराब से तुम्हारी सेहत खराब होगी , तुम्हारी अपराध वृति बढ़ेगी , तुम व्यभिचार के लिए प्रेरित होगे । शराब के लिए पैसे देकर मैं पाप नहीं करूँगा । मेरा ध्येय लोगों को बुराई से अच्छाई की ओर लाना है ।
' यदि तुम स्वास्थ्यदायक चीज खाना चाहो , घर में बच्चों के लिए कुछ ले जाना चाहो तो मैं तुम्हे अभी पैसे दे सकता हूँ । कागावा ने उसकी ओर कुछ रूपये बढ़ाते हुए कहा --- तुम हामी भरो यह रुपया किसी खराब काम में खर्च नहीं करोगे , इन्हें किसी अच्छे काम में खर्च करना ।
वह बदमाश बड़ी देर तक कागावा का मुंह देखता रहा और सोचता रहा --- क्या संसार में ऐसे अच्छे आदमी भी रहते हैं जो मौत का सन्देश लिए खड़े व्यक्ति का भी हित तथा कल्याण चाहते हैं , उसके प्रति सदभावना रखते हैं । मर जाने को तैयार हैं पर गलत बात को प्रोत्साहित करने को तैयार नहीं । उसने पिस्तौल फेंक दी और कहा ---- देवता ! आज से मैं भला आदमी हो गया , अब कभी कोई अपराध नहीं करूँगा । परोपकारी कागावा के प्रभाव से बदमाशों का सरदार बदल गया और फिर तब से बस्ती में बदमाशों का कोई उपद्रव नहीं हुआ ।
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