लोभ के वशीभूत होकर प्राय: लोग अपनी शारीरिक , बौद्धिक तथा व्यवहारिक शक्तियों का दुरूपयोग कर धन - सम्पति का संचय किया करते हैं । इसके लिए वे शोषण , छल - कपट और आडम्बर का आश्रय लिया करते हैं । उनके इन लोभ प्रेरित कार्यों से न जाने कितने लोगों को कष्ट , हानि और दुःख सहन करना पड़ता है । ऐसे कार्यों को करने में जीवन का दुरूपयोग करना उसको नष्ट करना ही है । डाकू - दल अपनी संगठित शक्ति और अस्त्र - शस्त्रों के बल पर लूटमार करते हैं और अपने को बड़ा बहादुर समझते हैं पर कभी किसी डाकू का अंत अच्छा हुआ हो , यह आज तक नहीं सुना गया ।
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