' कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जो देश के लिए प्राणोत्सर्ग करते हैं और कुछ ऐसे होते हैं , जो देश - भक्तों का निर्माण करते हैं । ' प्रेमचन्द्र जी दूसरी श्रेणी के व्यक्ति थे । उन्होंने समय की आवश्यकता के अनुरूप प्रेरक - साहित्य रचकर ज्ञान देवता की आराधना में अपना सम्पूर्ण जीवन लगा दिया और अपनी सभी इच्छाओं , तृष्णाओं को गला दिया । इनके साहित्य से प्रेरणा पाकर हजारों नवयुवक देश के लिए सर्वस्व न्योछावर करने के लिए तत्पर हो गये ।
गई गुजरी स्थिति से ऊपर उठने , शोषितों को ऊपर उठाने , देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक ऐसा आग्रह इनकी रचनाओं में था कि वे पाठक के विचारों को उत्तेजित करती थीं और वह कर्म क्षेत्र में कूद पड़ता था ।
प्रेमचन्द्र जी को उपन्यास - सम्राट बनाने का श्रेय उनकी माँ को जाता है । उनकी माँ प्रखर बुद्धि थीं उनके किस्से - उनकी कहानियां इतनी लम्बी होती थीं कि सुनाते - सुनाते खत्म ही नहीं होने को आती और यह क्रम लगभग पंद्रह दिन तक जारी रहता था । श्रोता सहज में जिज्ञासु हो चुपचाप सुना करता था । उनके कथा - कौशल ने प्रेमचन्द्र को बहुत कुछ दिया था l
उनकी पहली कहानी ' संसार का सबसे अनमोल रत्न ' 1907 में जमाना में छपी थी l उनके कहानी संग्रह ' सोजे वतन ' में जनता की पीड़ा और घुटन के साथ देश प्रेमियों से विदेशी शासन का चोला उतर फेंकने की अपील और प्रेरणा थी l इसके प्रकाशन के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने इसकी सारी प्रतियाँ जब्त कर लीं l पुस्तक जलाने के साथ प्रेमचन्द्र जी को धमकी दी गई किन्तु इससे वे न तो भयभीत हुए और न ही उन्हें आदर्शों से डिगाया जा सका l
उन्होंने साहित्य के मध्यम से विश्व मानव की , दरिद्र और पीड़ित मानव की सेवा की l उन्होंने जन - मानस को झकझोर कर रख देने वाला साहित्य रचा l
गई गुजरी स्थिति से ऊपर उठने , शोषितों को ऊपर उठाने , देश के लिए कुछ कर गुजरने का एक ऐसा आग्रह इनकी रचनाओं में था कि वे पाठक के विचारों को उत्तेजित करती थीं और वह कर्म क्षेत्र में कूद पड़ता था ।
प्रेमचन्द्र जी को उपन्यास - सम्राट बनाने का श्रेय उनकी माँ को जाता है । उनकी माँ प्रखर बुद्धि थीं उनके किस्से - उनकी कहानियां इतनी लम्बी होती थीं कि सुनाते - सुनाते खत्म ही नहीं होने को आती और यह क्रम लगभग पंद्रह दिन तक जारी रहता था । श्रोता सहज में जिज्ञासु हो चुपचाप सुना करता था । उनके कथा - कौशल ने प्रेमचन्द्र को बहुत कुछ दिया था l
उनकी पहली कहानी ' संसार का सबसे अनमोल रत्न ' 1907 में जमाना में छपी थी l उनके कहानी संग्रह ' सोजे वतन ' में जनता की पीड़ा और घुटन के साथ देश प्रेमियों से विदेशी शासन का चोला उतर फेंकने की अपील और प्रेरणा थी l इसके प्रकाशन के साथ ही ब्रिटिश सरकार ने इसकी सारी प्रतियाँ जब्त कर लीं l पुस्तक जलाने के साथ प्रेमचन्द्र जी को धमकी दी गई किन्तु इससे वे न तो भयभीत हुए और न ही उन्हें आदर्शों से डिगाया जा सका l
उन्होंने साहित्य के मध्यम से विश्व मानव की , दरिद्र और पीड़ित मानव की सेवा की l उन्होंने जन - मानस को झकझोर कर रख देने वाला साहित्य रचा l
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