भारत के प्रसिद्ध साहित्यकार तथा मराठी भाषा के महान लेखक मामा वरेरकर का कहना था ---- " ऐसा जन - साहित्य जो राष्ट्रीय एवं सामाजिक जीवन में एक नवीन जागरण ला सके , यदि मैं अपनी लेखनी द्वारा सम्पादन कर सका तो अपने जीवन को धन्य मानूंगा ।
मामाजी में लेखक बनने की लगन बहुत छोटी आयु में लग गई थी । एक बार उनके गाँव में नौटंकी - नाटक आया जिसमे राधा - कृष्ण की लीला दिखाई गई । उस समय मामाजी की आयु केवल 13 वर्ष थी । जो व्यक्ति कृष्ण बना था , वह लगभग 30 वर्ष की आयु का था और जो राधा बना उसकी आयु केवल 15-16 वर्ष । मामाजी को यह बात खटकी । उन्होंने पढ़ रखा था कि कृष्ण की आयु आठ वर्ष की थी और राधा उनसे उम्र में बड़ी थीं ।
बालक वरेरकर ने रासलीला के मालिक से मिले और उसे उसकी गलती बतलाई । वह समझदार था उसने कहा ---- इस तरह के नाटक मैं स्वयं तो लिखता नहीं हूँ , लिखने वाले जैसा लिखते हैं वैसी लीला हम करके दिखा देते हैं । तुम ठीक - ठाक लिख दो, उसी के अनुसार हम अपनी लीला करने लगेंगे ।
इस छोटी सी घटना से मामाजी समाज में साहित्य का महत्व समझ गये । उन्हें विश्वास हो गया कि
समाज को बनाना , उसमे सत्य एवं असत्य की प्रस्थापना करना लेखकों पर बहुत कुछ निर्भर करता है । साहित्य के अनुसार ही किसी राष्ट्र तथा समाज का उत्थान - पतन हुआ करता है । उन्होंने साहित्य के मध्यम से अपना जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित कर दिया ।
सबसे पहले उन्होंने ' विधवा - कुमारी ' नाटक लिखा फिर गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर उनके उद्देश्य में सहयोग करने के लिए ' क्रीतदास ' नामक नाटक लिखा । इस नाटक का मूल उद्देश्य यह रहा कि मौखिक देश भक्ति से देश का उद्धार नहीं हो सकता । इसके लिए रचनात्मक कार्यक्रम लेकर कर्म क्षेत्र में उतरना होगा । साथ ही एक ओर देश भक्ति का जामा पहन कर जनता के सामने और दूसरी ओर श्रद्धा का लाभ उठाकर लोगों को लूटना देश भक्ति नहीं , देश द्रोह है । ऐसे वंचक देश भक्तों से जन - साधारण को सदैव सावधान रहना चाहिए ।
मामाजी के इस नाटक ने इतना काम कर दिखाया , जितना कि बहुत से प्रचारक मिलकर नहीं कर पाते । वे न केवल नाटक लिखते थे बल्कि स्वयं अपने निर्देशन में अभिनीत भी कराया करते थे ।
मामाजी में लेखक बनने की लगन बहुत छोटी आयु में लग गई थी । एक बार उनके गाँव में नौटंकी - नाटक आया जिसमे राधा - कृष्ण की लीला दिखाई गई । उस समय मामाजी की आयु केवल 13 वर्ष थी । जो व्यक्ति कृष्ण बना था , वह लगभग 30 वर्ष की आयु का था और जो राधा बना उसकी आयु केवल 15-16 वर्ष । मामाजी को यह बात खटकी । उन्होंने पढ़ रखा था कि कृष्ण की आयु आठ वर्ष की थी और राधा उनसे उम्र में बड़ी थीं ।
बालक वरेरकर ने रासलीला के मालिक से मिले और उसे उसकी गलती बतलाई । वह समझदार था उसने कहा ---- इस तरह के नाटक मैं स्वयं तो लिखता नहीं हूँ , लिखने वाले जैसा लिखते हैं वैसी लीला हम करके दिखा देते हैं । तुम ठीक - ठाक लिख दो, उसी के अनुसार हम अपनी लीला करने लगेंगे ।
इस छोटी सी घटना से मामाजी समाज में साहित्य का महत्व समझ गये । उन्हें विश्वास हो गया कि
समाज को बनाना , उसमे सत्य एवं असत्य की प्रस्थापना करना लेखकों पर बहुत कुछ निर्भर करता है । साहित्य के अनुसार ही किसी राष्ट्र तथा समाज का उत्थान - पतन हुआ करता है । उन्होंने साहित्य के मध्यम से अपना जीवन समाज और राष्ट्र को समर्पित कर दिया ।
सबसे पहले उन्होंने ' विधवा - कुमारी ' नाटक लिखा फिर गांधीजी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर उनके उद्देश्य में सहयोग करने के लिए ' क्रीतदास ' नामक नाटक लिखा । इस नाटक का मूल उद्देश्य यह रहा कि मौखिक देश भक्ति से देश का उद्धार नहीं हो सकता । इसके लिए रचनात्मक कार्यक्रम लेकर कर्म क्षेत्र में उतरना होगा । साथ ही एक ओर देश भक्ति का जामा पहन कर जनता के सामने और दूसरी ओर श्रद्धा का लाभ उठाकर लोगों को लूटना देश भक्ति नहीं , देश द्रोह है । ऐसे वंचक देश भक्तों से जन - साधारण को सदैव सावधान रहना चाहिए ।
मामाजी के इस नाटक ने इतना काम कर दिखाया , जितना कि बहुत से प्रचारक मिलकर नहीं कर पाते । वे न केवल नाटक लिखते थे बल्कि स्वयं अपने निर्देशन में अभिनीत भी कराया करते थे ।
No comments:
Post a Comment