जिस महान कार्य के फलस्वरूप श्री पटेल को सरदार की उपाधि दी गई और जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में अपने अमित पदचिन्ह छोड़ने का गौरव प्राप्त किया , वह था -----
' बारदौली का अहिंसक संग्राम । '
बारदौली सूरत जिले का एक छोटा सा भूभाग है यहाँ के किसानों ने अपने परिश्रम से खेतों को खूब हरा - भरा और उपजाऊ बना रखा था , यह देख सरकारी अधिकारियों को लालच लगता और वे भूमि का लगान क्रमशः बढ़ाते जाते । जब 1927 में सरकार ने बारदौली तालुका पर पुन: लगान बढ़ाने की घोषणा की तो किसानों में असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई और उन्होंने सरदार पटेल को अपनी विपत्ति की कथा कह सुनाई ।
सरदार पटेल ने देखा कि बारदौली की जमीन उत्तम है और किसान भी परिश्रमी है फिर भी उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है , किसान अशिक्षित और असंगठित हैं इस कारण सरकारी नौकरों , व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा तरह - तरह से लूटे जाते हैं । उन्होंने किसानों को सरकार से संघर्ष करने के लिए उत्साहित करते हुए कहा ---- " किसान क्यों डरे ? वह भूमि को जोतकर धन कमाता है , वह अन्नदाता है । जो किसान वर्षा में भीगकर , कीचड़ में सनकर, शीत - घाम को सहन करते हुए मरखने बैलों तक से काम ले सकता है , उसे डर किसका ? सरकार भले ही बड़ी साहूकार हो , पर किसान उसका किरायेदार कब से हुआ ? क्या सरकार इस जमीन को विलायत से लाई है ?"
श्री पटेल के जोशीले भाषणों और निर्भीक वाणी को सुनकर किसान सोते से जाग पड़े । उन्होंने अंत तक संघर्ष करने और उसके मध्य जितनी भी आपतियां आयें उन सबको द्रढ़ता पूर्वक सहन करने की प्रतिज्ञा । यह देखकर पहले तो श्री पटेल ने बम्बई के गवर्नर को लगान बढ़ाने का हुक्म रद्द करने के लिए एक तर्कयुक्त और विनम्र पत्र लिखा , पर जब उसने उसे अस्वीकार कर दिया , तो उन्होंने सरकार के विरुद्ध ' कर बन्दी ' आन्दोलन की घोषणा कर दी । उन्होंने किसानों का जैसा सुद्रढ़ संगठन किया उसे देखकर बम्बई की एक सर्वजनिक सभा में किसी भाषण कर्ता ने उनको ' सरदार ' नाम से पुकारा । गांधीजी को यह नाम पसंद आ गया और तब से पटेल जनता के सच्चे ' सरदार ' ही बन गए ।
उन्होंने किसानों को समझाया --- " चाहे कितनी आपत्तियां आयें , कितने ही कष्ट झेलने पड़ें , अब तो ऐसी लड़ाई लड़नी चाहिए जिसमे सम्मान की रक्षा हो । सरकार के पास निर्दयी आदमी , भाले, तोपें , बन्दूक सब कुछ है । तुम्हारे पास केवल तुम्हारा ह्रदय है , अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का साहस तुममे हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो । यह प्रश्न स्वाभिमान का है ।
उन्होंने कहा --- सरकारी अधिकारी तो लंगड़े होते हैं उनका काम तो गाँव में पटेल , मुखिया आदि की सहायता से चलता है । पर अब ये कोई उनकी सहायता न करें । प्रत्येक व्यक्ति के मुख पर सरकार के साथ लड़ने का दृढ़ निश्चय हो । "
एक तो सत्य वैसे ही तेजवान होता है किन्तु जब वह किसी चरित्रवान की वाणी से निसृत होता है तो वह अपना असाधारण प्रभाव छोड़ता है ।
बारदौली के किसान जाग गए । जब उनके गाय, बैल गृहस्थी के सामान को कुर्क करने की धमकी दी जाती तो वह जरा भी न घबराता , न भयभीत होता । किसान कहते ---- " अब तो वल्लभभाई हमारे सरदार हैं , उनकी जैसी आज्ञा होगी हम वही करेंगे । "
बम्बई के पारसी नेता श्री नरीमैन ने अपने एक भाषण में कहा --- " बारदौली में आज अंग्रेजों को पूछता कौन है । लोगों की सच्ची कचहरी तो ' स्वराज्य आश्रम ' है और उनकी सच्ची सरकार सरदार वल्लभ भाई । पर वल्लभ भाई के पास न तो तोप है और न भाले , बन्दूक । वह तो केवल प्रेम और सत्य के सहारे बारदौली में राज कर रहे हैं । "
जब सरकार जब्ती , कुर्की , नीलामी , मार - पीट आदि सब उपाय करके थक गयी और किसान टस से मस न हुए तो उसने अपनी हार स्वीकार कर ली । और बम्बई के गवर्नर ने सरदार पटेल को समझौते के सम्बन्ध में बात करने को बुलाया । सभी मांगे स्वीकार कर ली गयीं । बारदौली की विजय का सम्पूर्ण देश में बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया ।
' बारदौली का अहिंसक संग्राम । '
बारदौली सूरत जिले का एक छोटा सा भूभाग है यहाँ के किसानों ने अपने परिश्रम से खेतों को खूब हरा - भरा और उपजाऊ बना रखा था , यह देख सरकारी अधिकारियों को लालच लगता और वे भूमि का लगान क्रमशः बढ़ाते जाते । जब 1927 में सरकार ने बारदौली तालुका पर पुन: लगान बढ़ाने की घोषणा की तो किसानों में असंतोष की भावना उत्पन्न हो गई और उन्होंने सरदार पटेल को अपनी विपत्ति की कथा कह सुनाई ।
सरदार पटेल ने देखा कि बारदौली की जमीन उत्तम है और किसान भी परिश्रमी है फिर भी उनकी आर्थिक स्थिति दयनीय है , किसान अशिक्षित और असंगठित हैं इस कारण सरकारी नौकरों , व्यापारियों तथा साहूकारों द्वारा तरह - तरह से लूटे जाते हैं । उन्होंने किसानों को सरकार से संघर्ष करने के लिए उत्साहित करते हुए कहा ---- " किसान क्यों डरे ? वह भूमि को जोतकर धन कमाता है , वह अन्नदाता है । जो किसान वर्षा में भीगकर , कीचड़ में सनकर, शीत - घाम को सहन करते हुए मरखने बैलों तक से काम ले सकता है , उसे डर किसका ? सरकार भले ही बड़ी साहूकार हो , पर किसान उसका किरायेदार कब से हुआ ? क्या सरकार इस जमीन को विलायत से लाई है ?"
श्री पटेल के जोशीले भाषणों और निर्भीक वाणी को सुनकर किसान सोते से जाग पड़े । उन्होंने अंत तक संघर्ष करने और उसके मध्य जितनी भी आपतियां आयें उन सबको द्रढ़ता पूर्वक सहन करने की प्रतिज्ञा । यह देखकर पहले तो श्री पटेल ने बम्बई के गवर्नर को लगान बढ़ाने का हुक्म रद्द करने के लिए एक तर्कयुक्त और विनम्र पत्र लिखा , पर जब उसने उसे अस्वीकार कर दिया , तो उन्होंने सरकार के विरुद्ध ' कर बन्दी ' आन्दोलन की घोषणा कर दी । उन्होंने किसानों का जैसा सुद्रढ़ संगठन किया उसे देखकर बम्बई की एक सर्वजनिक सभा में किसी भाषण कर्ता ने उनको ' सरदार ' नाम से पुकारा । गांधीजी को यह नाम पसंद आ गया और तब से पटेल जनता के सच्चे ' सरदार ' ही बन गए ।
उन्होंने किसानों को समझाया --- " चाहे कितनी आपत्तियां आयें , कितने ही कष्ट झेलने पड़ें , अब तो ऐसी लड़ाई लड़नी चाहिए जिसमे सम्मान की रक्षा हो । सरकार के पास निर्दयी आदमी , भाले, तोपें , बन्दूक सब कुछ है । तुम्हारे पास केवल तुम्हारा ह्रदय है , अपनी छाती पर इन प्रहारों को सहने का साहस तुममे हो तो आगे बढ़ने की बात सोचो । यह प्रश्न स्वाभिमान का है ।
उन्होंने कहा --- सरकारी अधिकारी तो लंगड़े होते हैं उनका काम तो गाँव में पटेल , मुखिया आदि की सहायता से चलता है । पर अब ये कोई उनकी सहायता न करें । प्रत्येक व्यक्ति के मुख पर सरकार के साथ लड़ने का दृढ़ निश्चय हो । "
एक तो सत्य वैसे ही तेजवान होता है किन्तु जब वह किसी चरित्रवान की वाणी से निसृत होता है तो वह अपना असाधारण प्रभाव छोड़ता है ।
बारदौली के किसान जाग गए । जब उनके गाय, बैल गृहस्थी के सामान को कुर्क करने की धमकी दी जाती तो वह जरा भी न घबराता , न भयभीत होता । किसान कहते ---- " अब तो वल्लभभाई हमारे सरदार हैं , उनकी जैसी आज्ञा होगी हम वही करेंगे । "
बम्बई के पारसी नेता श्री नरीमैन ने अपने एक भाषण में कहा --- " बारदौली में आज अंग्रेजों को पूछता कौन है । लोगों की सच्ची कचहरी तो ' स्वराज्य आश्रम ' है और उनकी सच्ची सरकार सरदार वल्लभ भाई । पर वल्लभ भाई के पास न तो तोप है और न भाले , बन्दूक । वह तो केवल प्रेम और सत्य के सहारे बारदौली में राज कर रहे हैं । "
जब सरकार जब्ती , कुर्की , नीलामी , मार - पीट आदि सब उपाय करके थक गयी और किसान टस से मस न हुए तो उसने अपनी हार स्वीकार कर ली । और बम्बई के गवर्नर ने सरदार पटेल को समझौते के सम्बन्ध में बात करने को बुलाया । सभी मांगे स्वीकार कर ली गयीं । बारदौली की विजय का सम्पूर्ण देश में बड़ी धूमधाम से स्वागत किया गया ।
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