महिलाओं , बच्चों और कमजोर वर्ग पर अत्याचार होते देखते रहना और केवल एकांत में बैठकर पूजा - पाठ कर अपने धार्मिक कर्तव्य की पूर्ति समझ लेना वास्तव में भ्रम है l
धर्म के अनेक स्वरुप होते हैं । इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्य , न्याय , दया परोपकार , पवित्रता आदि धर्म के अमिट सिद्धांत है और इनका व्यक्तिगत रूप से पालन किये बिना कोई व्यक्ति धर्मात्मा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता । इसके सिवाय और भी बहुत सी बातें हैं जो सामुदायिक द्रष्टि से मनुष्य का कर्तव्य मानी जाती हैं और उनसे विमुख होने पर मनुष्य अपने कर्तव्य से पतित माना जाता है ।
देश भक्ति भी ऐसा ही पवित्र कर्तव्य है । जिस देश में मनुष्य ने जन्म लिया और जिसके अन्न जल से उसकी देह पुष्ट हुई उसकी रक्षा और भलाई का ध्यान रखना भी मनुष्य के बहुत बड़े धर्मों में से एक है ।
धर्म के अनेक स्वरुप होते हैं । इसमें कोई संदेह नहीं कि सत्य , न्याय , दया परोपकार , पवित्रता आदि धर्म के अमिट सिद्धांत है और इनका व्यक्तिगत रूप से पालन किये बिना कोई व्यक्ति धर्मात्मा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता । इसके सिवाय और भी बहुत सी बातें हैं जो सामुदायिक द्रष्टि से मनुष्य का कर्तव्य मानी जाती हैं और उनसे विमुख होने पर मनुष्य अपने कर्तव्य से पतित माना जाता है ।
देश भक्ति भी ऐसा ही पवित्र कर्तव्य है । जिस देश में मनुष्य ने जन्म लिया और जिसके अन्न जल से उसकी देह पुष्ट हुई उसकी रक्षा और भलाई का ध्यान रखना भी मनुष्य के बहुत बड़े धर्मों में से एक है ।
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