मैक्सिम गोर्की ने अपने जीवन में जो अनुभव प्राप्त किये वे सब कटु और वेदना भरे थे । इस प्रकार के जीवन ने उन्हें जो अमूल्य रत्न कण दिये उनसे प्रेरित होकर और तत्कालीन रुसी लेखक करोनिन से प्रोत्साहन पाकर उन्होंने लिखना प्रारंभ किया ।
उस समय रूस में मुख्य रूप से दो विचार धाराएँ प्रचलित थीं ----- एक -- नीत्से का मत्स्य न्याय सिद्धांत --- जिसके अनुसार महत्वकांक्षी व्यक्ति को अपने से निम्न स्थिति के लोगों की टांग खींचकर ऊँचा उठने की बात कही गई थी ।
दूसरे विचारकों ने खुशामद और अति नम्रता का प्रचार किया जो मनुष्य को आत्माभिमान से एकदम गिरा देती है ।
मैक्सिम गोर्की को ये दोनों जीवन दर्शन अनुपयुक्त लगे और उन्होंने इस सिद्धांत का प्रचार किया कि जो उठने के उत्सुक हैं उन्हें सहारा दो और खड़े होने में मदद करो ।
यद्दपि उन्हें अपने जीवन में रुसी लेखक करोनिन और स्टीमर के बावर्ची को छोड़कर कभी किसी का सहयोग नहीं मिला फिर भी उन्होंने मानवता में अटूट विश्वास व्यक्त किया ।
वह युग जारशाही का था ।
उस समय रूस में मुख्य रूप से दो विचार धाराएँ प्रचलित थीं ----- एक -- नीत्से का मत्स्य न्याय सिद्धांत --- जिसके अनुसार महत्वकांक्षी व्यक्ति को अपने से निम्न स्थिति के लोगों की टांग खींचकर ऊँचा उठने की बात कही गई थी ।
दूसरे विचारकों ने खुशामद और अति नम्रता का प्रचार किया जो मनुष्य को आत्माभिमान से एकदम गिरा देती है ।
मैक्सिम गोर्की को ये दोनों जीवन दर्शन अनुपयुक्त लगे और उन्होंने इस सिद्धांत का प्रचार किया कि जो उठने के उत्सुक हैं उन्हें सहारा दो और खड़े होने में मदद करो ।
यद्दपि उन्हें अपने जीवन में रुसी लेखक करोनिन और स्टीमर के बावर्ची को छोड़कर कभी किसी का सहयोग नहीं मिला फिर भी उन्होंने मानवता में अटूट विश्वास व्यक्त किया ।
वह युग जारशाही का था ।
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