' विद्दा - बुद्धि के साथ मनुष्य में नैतिक बल और सच्चरित्रता का गुण होना अनिवार्य है । '
जिसमे नैतिकता और सच्चरित्रता का भाव नहीं है उसकी विद्दा - बुद्धि दूसरों का अहित करने वाली, असत्य को सत्य सिद्ध करने वाली बन जाती है ।
बुद्धि केवल मार्ग दिखलाने वाली है । यदि पथिक जान-बूझकर कुमार्ग पर चला जाये और कष्ट उठाये तो बुद्धि उसका कुछ नहीं कर सकती पर नैतिकता मनुष्य को सुमार्ग से विचलित नहीं होने देती , इसलिए मनुष्य को बुद्धि रहते भी नैतिक बल की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । '
विद्दा - बुद्धि और नैतिक बल में घनिष्ठ सम्बन्ध है , यदि ऐसा न होता तो अनेक प्रसिद्ध विद्वानों , लेखकों और मेधावी व्यक्तियों में अनेक शराबी , फिजूलखर्च और व्यभिचार क्यों दिखलाई पड़ते ? उनकी यह विशाल विद्दा , प्रतिभा उनको पाप चिंता और दुराचार से क्यों नहीं हटाती ? इसलिए सब मनुष्यों के लिए सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि वे नैतिकता के पथ पर चलें । शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को चरित्रवान बनाना होना चाहिए ।
जिसमे नैतिकता और सच्चरित्रता का भाव नहीं है उसकी विद्दा - बुद्धि दूसरों का अहित करने वाली, असत्य को सत्य सिद्ध करने वाली बन जाती है ।
बुद्धि केवल मार्ग दिखलाने वाली है । यदि पथिक जान-बूझकर कुमार्ग पर चला जाये और कष्ट उठाये तो बुद्धि उसका कुछ नहीं कर सकती पर नैतिकता मनुष्य को सुमार्ग से विचलित नहीं होने देती , इसलिए मनुष्य को बुद्धि रहते भी नैतिक बल की उपेक्षा नहीं करनी चाहिये । '
विद्दा - बुद्धि और नैतिक बल में घनिष्ठ सम्बन्ध है , यदि ऐसा न होता तो अनेक प्रसिद्ध विद्वानों , लेखकों और मेधावी व्यक्तियों में अनेक शराबी , फिजूलखर्च और व्यभिचार क्यों दिखलाई पड़ते ? उनकी यह विशाल विद्दा , प्रतिभा उनको पाप चिंता और दुराचार से क्यों नहीं हटाती ? इसलिए सब मनुष्यों के लिए सबसे बड़ी शिक्षा यही है कि वे नैतिकता के पथ पर चलें । शिक्षा का मुख्य उद्देश्य मनुष्य को चरित्रवान बनाना होना चाहिए ।
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