' हठ से हठ का जन्म होता है । यदि कोई अपने शुभ - विचारों को भी हठात किसी अविचारी के मत्थे मढ़ना चाहता है तो उसकी प्रतिक्रिया के फलस्वरूप वह अपने अविचार के प्रति ही दुराग्रही हो जाता है । '
मनुष्य अपने संस्कारों के प्रति बड़ा दुराग्रही होता है । बुरे से बुरे अनुपयोगी तथा अहितकर संस्कारों के स्थान पर वह शुभ एवं समय सम्मत संस्कारों को आसानी से सहन नहीं कर पाता । प्राचीनता के प्रति अनुरोध और अर्वाचीन के प्रति विरोध उसका सहज स्वभाव बन जाता है ।
समाज में इस प्रकार के प्राचीन संस्कार रखने वाले लोगों की कमी नहीं होती और वे उनके प्रति किसी सुधार का सन्देश सुनते ही अनायास ही संगठित होकर नवीनता के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं । ऐसे अवसरों पर यदि किसी शक्ति का सहारा लेकर उन्हें नवीन संस्कारों में दीक्षित करने का प्रयत्न किया जाता है तो एक संघर्ष या निरर्थक टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है जिससे समाज अथवा राष्ट्र शक्तिशाली होने के स्थान पर निर्बल ही अधिक बन जाता है । इसलिए समझदार समाज - सुधारक विचार बल से ही किसी परिवर्तन को लाने का प्रयत्न किया करते हैं ।
किसी शक्ति का सहारा लेने की अपेक्षा अपने उन विचारों को ही तेजस्वी बनाना ठीक होता है जिनको कोई हितकर समझ कर समाज या व्यक्ति में समावेश करना चाहता है । जिनका आचरण शुद्ध होगा , जिनके विचार तेजस्वी होंगे , उन्हें हर कोई स्वीकार करने को तत्पर होगा ।
मनुष्य अपने संस्कारों के प्रति बड़ा दुराग्रही होता है । बुरे से बुरे अनुपयोगी तथा अहितकर संस्कारों के स्थान पर वह शुभ एवं समय सम्मत संस्कारों को आसानी से सहन नहीं कर पाता । प्राचीनता के प्रति अनुरोध और अर्वाचीन के प्रति विरोध उसका सहज स्वभाव बन जाता है ।
समाज में इस प्रकार के प्राचीन संस्कार रखने वाले लोगों की कमी नहीं होती और वे उनके प्रति किसी सुधार का सन्देश सुनते ही अनायास ही संगठित होकर नवीनता के विरुद्ध खड़े हो जाते हैं । ऐसे अवसरों पर यदि किसी शक्ति का सहारा लेकर उन्हें नवीन संस्कारों में दीक्षित करने का प्रयत्न किया जाता है तो एक संघर्ष या निरर्थक टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है जिससे समाज अथवा राष्ट्र शक्तिशाली होने के स्थान पर निर्बल ही अधिक बन जाता है । इसलिए समझदार समाज - सुधारक विचार बल से ही किसी परिवर्तन को लाने का प्रयत्न किया करते हैं ।
किसी शक्ति का सहारा लेने की अपेक्षा अपने उन विचारों को ही तेजस्वी बनाना ठीक होता है जिनको कोई हितकर समझ कर समाज या व्यक्ति में समावेश करना चाहता है । जिनका आचरण शुद्ध होगा , जिनके विचार तेजस्वी होंगे , उन्हें हर कोई स्वीकार करने को तत्पर होगा ।
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