जस्टिस रानाडे ने ' समाज सुधार कान्फ्रेंस ' में भाषण करते हुए कहा था ----- " जब तक हम अपनी जातीय कुरीतियों का सुधार नहीं करेंगे तब तक राजनैतिक अधिकारों को प्राप्त करने की इच्छा व्यर्थ है l सामाजिक नियमों का आधार उदारता होनी चाहिए l "
एक बार मद्रास कांग्रेस से पूना लौटते समय एक अंग्रेज ने उनको सामान्य सामान्य आदमी समझकर उनका सामान फर्स्ट क्लास की सीट पर से हटवा दिया l जब उनके साथियों ने इस बात के लिए मुकदमा चलाकर उस अंग्रेज को दंड दिलाने पर जोर दिया तो रानाडे ने कहा --------
" ऐसी बातों पर लड़ना - झगड़ना व्यर्थ है l यह सच है कि लगभग सभी अंग्रेज हम लोगों को जंगली आदमी समझते हैं , पर क्या इस द्रष्टि से हम लोगों का आचरण अच्छा है ? हम अछूतों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं ? कई जाति वालों को हम छूते भी नहीं | मैं पूछता हूँ क्या वे जानवरों से भी गये - गुजरे हैं ? यदि हम लोगों की यह दशा है तो हम किस मुंह से अंग्रेज जाति की निंदा कर सकते हैं ? "
एक बार मद्रास कांग्रेस से पूना लौटते समय एक अंग्रेज ने उनको सामान्य सामान्य आदमी समझकर उनका सामान फर्स्ट क्लास की सीट पर से हटवा दिया l जब उनके साथियों ने इस बात के लिए मुकदमा चलाकर उस अंग्रेज को दंड दिलाने पर जोर दिया तो रानाडे ने कहा --------
" ऐसी बातों पर लड़ना - झगड़ना व्यर्थ है l यह सच है कि लगभग सभी अंग्रेज हम लोगों को जंगली आदमी समझते हैं , पर क्या इस द्रष्टि से हम लोगों का आचरण अच्छा है ? हम अछूतों के साथ कैसा बर्ताव करते हैं ? कई जाति वालों को हम छूते भी नहीं | मैं पूछता हूँ क्या वे जानवरों से भी गये - गुजरे हैं ? यदि हम लोगों की यह दशा है तो हम किस मुंह से अंग्रेज जाति की निंदा कर सकते हैं ? "
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