बंकिम बाबू ने केवल उपन्यास ही नहीं लिखे , अनेक गंभीर और तथ्यपूर्ण निबंध भी लिखे | उनके मासिक पत्र ' बंग दर्शन ' में प्रकाशित अनेक निबंध आज भी साहित्य की अमूल्य थाती समझे जाते हैं | उनके उच्च कोटि के निबंधों में ' धर्म तत्व ' नामक पुस्तक महत्वपूर्ण है | उन्होंने इसमें भारतीय जनता के सामने एक नया द्रष्टिकोण प्रस्तुत किया ------ हमारे देश में हजार व्यक्तियों में से दस - पांच व्यक्तियों को छोड़कर शेष सब लोग बाह्य पूजा -पाठ , तीर्थ -वृत, जप - तप आदि को ही ' धर्म ' मानने लगे हैं , पर ऐसे लोगों की कमी नहीं जो इन सब बातों को करते हुए भी घोर दुष्टता के कार्य करने में संकोच नहीं करते | वे किसी के पूरे परिवार की हत्या कर सकते हैं , गरीबों का नृशंस्ता पूर्वक शोषण और उत्पीड़न कर सकते हैं , अदालत में झूठे मुकदमे चला सकते हैं , खाद्द्य पदार्थों में हानिकारक वस्तुओं की मिलावट करके समाज को हानि पहुंचा सकते हैं | व्यापार में हर तरह की धोखाधड़ी कर सकते हैं , घोर पाप कर्म छुपकर करते हुए भी ' धार्मिक ' और धर्म मूर्ति ' कहला सकते हैं l कारण यही है कि लोग धर्म के सच्चे स्वरुप को भूलकर ऊपरी कर्मकांड को ही ' धर्मपालन ' समझने लग जाते हैं और अपने मन में संतोष कर लेते हैं कि हम धर्म शास्त्रों के नियमों का पालन तो कर रहे हैं l
बंकिमचन्द्र ने इस निबंध में किसी विशेष धर्म के सिद्धांतों का वर्णन नहीं किया अपितु मानसिक शुद्धता और श्रेष्ठता से पूर्ण मानव धर्म के विभिन्न लक्षणों का वर्णन किया है |
बंकिमचन्द्र ने इस निबंध में किसी विशेष धर्म के सिद्धांतों का वर्णन नहीं किया अपितु मानसिक शुद्धता और श्रेष्ठता से पूर्ण मानव धर्म के विभिन्न लक्षणों का वर्णन किया है |
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