गणेश शंकर विद्दार्थी ने एक विद्दालय में प्रवेश लिया l प्रवेश के समय उनकी पोषक थी ---- धोती , कुरता , टोपी , जाकेट और पैरों में साधारण चप्पल l अन्य छात्रों ने व्यंग्य किया कि कम से कम अपना पहनावा तो ऐसा बनाओ कि लोग जान सकें कि तुम एक बड़े विद्दालय के विद्दार्थी हो l
विद्दार्थी जी ने उत्तर दिया ---- " अगर पोशाक पहनने से ही व्यक्तित्व ऊपर उठ जाता तो पैंट और कोट पहनने वाला हर अंग्रेज महान पंडित होता , मुझे तो उनमे ऐसी कोई विशेषता दिखाई नहीं देती l रही शान घटने की बात तो अगर सात समुद्र पार से आने वाले और भारत जैसे गर्म देश में ठन्डे मुल्क के अंग्रेज केवल इसलिए अपनी पोशाक नहीं बदल सकते कि वह उनकी संस्कृति का अंग है तो मैं ही अपनी संस्कृति को क्यों हेय होने दूँ ? मुझे अपना मान, प्रशंसा और प्रतिष्ठा से ज्यादा धर्म प्यारा है , संस्कृति प्रिय है , जिसे जो कहना हो कहे मैं अपनी संस्कृति का परित्याग नहीं कर सकता ? भारतीय पोशाक छोड़ देना मेरे लिए मरण तुल्य है l "
विद्दार्थी जी ने उत्तर दिया ---- " अगर पोशाक पहनने से ही व्यक्तित्व ऊपर उठ जाता तो पैंट और कोट पहनने वाला हर अंग्रेज महान पंडित होता , मुझे तो उनमे ऐसी कोई विशेषता दिखाई नहीं देती l रही शान घटने की बात तो अगर सात समुद्र पार से आने वाले और भारत जैसे गर्म देश में ठन्डे मुल्क के अंग्रेज केवल इसलिए अपनी पोशाक नहीं बदल सकते कि वह उनकी संस्कृति का अंग है तो मैं ही अपनी संस्कृति को क्यों हेय होने दूँ ? मुझे अपना मान, प्रशंसा और प्रतिष्ठा से ज्यादा धर्म प्यारा है , संस्कृति प्रिय है , जिसे जो कहना हो कहे मैं अपनी संस्कृति का परित्याग नहीं कर सकता ? भारतीय पोशाक छोड़ देना मेरे लिए मरण तुल्य है l "
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