रेणु जी का विचार था --- जिस समाज से अनेक साधनों और सेवाओं को पाकर हमारा जीवन पल रहा है , इसका कर्ज नकद रूप में चुका सकना असंभव है l अत: समाज की भलाई के लिए काम न आ सके तो इससे बुरी बात और क्या हो सकती है l ' वे कहा करते थे --- ' जितनी महत्ता व्यक्ति की नहीं , उतनी समग्र राष्ट्र की है | '
समाज में जब वे शोषितों और दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार देखते थे तो उनका ह्रदय द्रवित हो जाता था l वे जानते थे कि--- ' ये दलित जिनको तिरस्कृत कर उनके मानवीय अधिकारों का हनन किया जा रहा है हमारे ही अंश हैं l समाज रूपी शरीर के समग्र विकास के लिए इनकी उपेक्षा करना अपने ही समाज को अपंग बनाना है l ' अत; वे उनकी न्यायोचित सहायता के लिए सदैव आगे बढ़ते रहे l नि:स्वार्थ सेवा के कारण उनके अनेक मित्र बन चुके थे l जब कोई उनके पास टूटे दिल से , अधूरे मन से , पस्त हिम्मत बेचैन होकर आता था , तो वह हिम्मत और शक्ति लेकर जाता था l लोग उनका आत्मीयता भरा प्यार , विवेकयुक्त सुझाव एवं सच्चा मार्ग दर्शन पा कर जाते थे l
समाज में जब वे शोषितों और दलितों के प्रति अमानवीय व्यवहार देखते थे तो उनका ह्रदय द्रवित हो जाता था l वे जानते थे कि--- ' ये दलित जिनको तिरस्कृत कर उनके मानवीय अधिकारों का हनन किया जा रहा है हमारे ही अंश हैं l समाज रूपी शरीर के समग्र विकास के लिए इनकी उपेक्षा करना अपने ही समाज को अपंग बनाना है l ' अत; वे उनकी न्यायोचित सहायता के लिए सदैव आगे बढ़ते रहे l नि:स्वार्थ सेवा के कारण उनके अनेक मित्र बन चुके थे l जब कोई उनके पास टूटे दिल से , अधूरे मन से , पस्त हिम्मत बेचैन होकर आता था , तो वह हिम्मत और शक्ति लेकर जाता था l लोग उनका आत्मीयता भरा प्यार , विवेकयुक्त सुझाव एवं सच्चा मार्ग दर्शन पा कर जाते थे l
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