' मौलाना मजहरुल हक ( जन्म 1866 ) को मुख्य रूप से साम्प्रदायिक एकता के लिए ही स्मरण किया जाता है l उन्होंने कई अवसरों पर कहा ----- ' हम हिन्दू हों या मुसलमान, सब एक ही नाव के यात्री हैं , डूबेंगे तो साथ और पार निकलेंगे तो एक साथ l '
अंग्रेजों की फूट डालने की नीति की वजह से जब दंगे हुए तो मौलाना हक ने कहा ----- 'मैं जानता हूँ आप लोग बहकाने में हैं , गलती पर हैं l जब आप शांतचित होकर विचार करेंगे तो आपको पता चलेगा कि हिन्दू और मुसलमान एक ही डाल के दो फूल हैं , एक ही माँ की दो आँखें हैं l '
एक बार सम्प्रदाय उन्मादियों ने उन्हें प्रलोभन देकर प्रस्ताव रखा ---- ' आप यह एकता की बात न करें और कांग्रेस को छोड़कर लीग में आ जाएँ l हम आपको लीग संगठन का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त करेंगे | '
मौलाना का एक ही उत्तर होता ----- " किसी माँ के दो बेटों में लालच देकर फूट पैदा करने की कोशिश की जाये तो मैं ऐसे बेवकूफ बेटों में से नहीं हूँ जो कुर्सी के लोभ में अपनी माँ का ह्रदय तोड़ दूँ l "
एक बार सारन जिले के फरीदपुर गाँव में कुछ मुसलमानों ने बकरीद पर गाय की क़ुरबानी देने का विचार किया जिससे हिन्दुओं की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचे l मौलाना हक को जैसे ही यह बात का पता लगा उन्होंने अपने आवश्यक कार्य छोड़कर मुसलमानों को बहुत समझाया जब वे न माने तो उन्होंने आमरण अनशन पर बैठने का निश्चय किया l इसका ऐसा असर हुआ कि मुसलमानों ने गौहत्या का विचार त्याग दिया l
आजीवन हिन्दू - मुस्लिम एकता का प्रयत्न करते हुए मौलाना हक जनवरी 1930 को परमधाम चले गए l उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर लाखों लोग रो उठे कि हिन्दू - मुस्लिम एकता का एक महान साधक उठ गया l
अंग्रेजों की फूट डालने की नीति की वजह से जब दंगे हुए तो मौलाना हक ने कहा ----- 'मैं जानता हूँ आप लोग बहकाने में हैं , गलती पर हैं l जब आप शांतचित होकर विचार करेंगे तो आपको पता चलेगा कि हिन्दू और मुसलमान एक ही डाल के दो फूल हैं , एक ही माँ की दो आँखें हैं l '
एक बार सम्प्रदाय उन्मादियों ने उन्हें प्रलोभन देकर प्रस्ताव रखा ---- ' आप यह एकता की बात न करें और कांग्रेस को छोड़कर लीग में आ जाएँ l हम आपको लीग संगठन का सर्वोच्च अधिकारी नियुक्त करेंगे | '
मौलाना का एक ही उत्तर होता ----- " किसी माँ के दो बेटों में लालच देकर फूट पैदा करने की कोशिश की जाये तो मैं ऐसे बेवकूफ बेटों में से नहीं हूँ जो कुर्सी के लोभ में अपनी माँ का ह्रदय तोड़ दूँ l "
एक बार सारन जिले के फरीदपुर गाँव में कुछ मुसलमानों ने बकरीद पर गाय की क़ुरबानी देने का विचार किया जिससे हिन्दुओं की धार्मिक भावना को ठेस पहुंचे l मौलाना हक को जैसे ही यह बात का पता लगा उन्होंने अपने आवश्यक कार्य छोड़कर मुसलमानों को बहुत समझाया जब वे न माने तो उन्होंने आमरण अनशन पर बैठने का निश्चय किया l इसका ऐसा असर हुआ कि मुसलमानों ने गौहत्या का विचार त्याग दिया l
आजीवन हिन्दू - मुस्लिम एकता का प्रयत्न करते हुए मौलाना हक जनवरी 1930 को परमधाम चले गए l उनकी मृत्यु का समाचार सुनकर लाखों लोग रो उठे कि हिन्दू - मुस्लिम एकता का एक महान साधक उठ गया l
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