' यदि किसी ऊँची और बड़ी सफलता को हासिल कर व्यक्ति को यह भ्रम हो जाता है कि यह सब उसने अपने बल पर हासिल किया है l वह स्वार्थी और अहंकारी हो जाता है , समाज और परिवार के प्रति अपने दायित्व को भूल जाता है तो उस व्यक्ति की आने वाले भविष्य में वही स्थिति होती है , जो आकाश में उड़ती हुई पतंग की डोर कट जाने पर कटी पतंग की होती है l '
इस सन्दर्भ में एक कथा है ------ एक बार एक पिता - पुत्र पतंग उड़ा रहे थे l पुत्र अपने पिता को पतंग उड़ाते हुए बड़े ध्यान से देख रहा था l पतंग आसमान में काफी दूर तक चली गई थी और वहां से पुत्र को स्थिर स्थिर नजर आने लगी l पतंग को एक जगह स्थिर देखकर कहा ---- " पिताजी ! आपने पतंग कि डोर पकड़ राखी है , उसे बाँध रखा है इसलिए वह आसमान में और ज्यादा आगे नहीं जा पा रही है l " पिता मुस्कराए और हाथ में पकड़ी डोर को छोड़ दिया l बंधन से मुक्त होकर पतंग हवा के झोंके से थोडा ऊँची गई , लेकिन फिर हिचकोले खाती हुई नीचे आने लगी और आख़िरकार मैदान में गिर गई l
पुत्र उदास हुआ और सोचने लगा -- अब तो पतंग डोर से मुक्त हो गई थी , फिर कैसे लड़खड़ा गई पिता ने समझाया ------ " बेटा ! जब हम अपने जीवन में सफलता कि ऊंचाईयां छूने लगते हैं , ढेर सारा धन कमा लेते हैं तो हमें लगने लगता है कि यदि हम पर अन्य जिम्मेदारियां नहीं होती तो हम और तरक्की करते l पारिवारिक बंधनों में नहीं बंधे होते तो और आगे जाते l ऐसे में हम बंधनों से मुक्त होना चाहते हैं , इनसे मुक्त होने कि कोशिश हमें क्षणिक स्वच्छंदता देती है और फिर धरातल पर ला पटकती है l "
इस सन्दर्भ में एक कथा है ------ एक बार एक पिता - पुत्र पतंग उड़ा रहे थे l पुत्र अपने पिता को पतंग उड़ाते हुए बड़े ध्यान से देख रहा था l पतंग आसमान में काफी दूर तक चली गई थी और वहां से पुत्र को स्थिर स्थिर नजर आने लगी l पतंग को एक जगह स्थिर देखकर कहा ---- " पिताजी ! आपने पतंग कि डोर पकड़ राखी है , उसे बाँध रखा है इसलिए वह आसमान में और ज्यादा आगे नहीं जा पा रही है l " पिता मुस्कराए और हाथ में पकड़ी डोर को छोड़ दिया l बंधन से मुक्त होकर पतंग हवा के झोंके से थोडा ऊँची गई , लेकिन फिर हिचकोले खाती हुई नीचे आने लगी और आख़िरकार मैदान में गिर गई l
पुत्र उदास हुआ और सोचने लगा -- अब तो पतंग डोर से मुक्त हो गई थी , फिर कैसे लड़खड़ा गई पिता ने समझाया ------ " बेटा ! जब हम अपने जीवन में सफलता कि ऊंचाईयां छूने लगते हैं , ढेर सारा धन कमा लेते हैं तो हमें लगने लगता है कि यदि हम पर अन्य जिम्मेदारियां नहीं होती तो हम और तरक्की करते l पारिवारिक बंधनों में नहीं बंधे होते तो और आगे जाते l ऐसे में हम बंधनों से मुक्त होना चाहते हैं , इनसे मुक्त होने कि कोशिश हमें क्षणिक स्वच्छंदता देती है और फिर धरातल पर ला पटकती है l "
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