उसके मन - मस्तिष्क पर ऐसा सदमा पहुंचा कि किसी स्वस्थ पुरुष , सुन्दर शिशु , युवती यहाँ तक कि पत्नी को भी देखकर घबरा जाता , आँखें बंद कर लेता , पैर कांपने लगते , बडबडाता--- " भागो ! भागो ! जल्दी तहखाने में जा छुपो l पिशाच आ रहे हैं l वे पिशाच जो अपने बमों से संसार को भून देने पर तुले हैं l "
वह था स्क्वार्डन लीडर चार्ल्स ग्रोव l जो बमवर्षक से बम गिराकर , धुंए व लपटों के अंगार को देखकर खुशी से सोच रहा था कि तारीख 27 जुलाई 1945 कितनी भाग्यशाली है जिसने उसे ' ओकिनावा ' को ध्वस्त करने का श्रेय दिया l द्वितीय विश्व युद्ध कि सेनाओं के कमांडर इन चीफ जनरल मैक आर्थर ने उसे बधाई सन्देश भेजा l चार्ल्स ग्रोव ने अफसर से उस चौकी को देखने कि अनुमति मांगी जिस पर आक्रमण कर अपने अधिकार में ले लिया था l ' अवश्य ' अनुमति मिल गई जीप से जाने की l
ओह ! उसे तो रास्ते में ही मूर्छा सी आने लगी , दारुण चीत्कार , जलते हुए मांस कि दुर्गन्ध , से सांस घुट जाती थी , उसने ओह ! जीते - जागते मनुष्यों को भून दिया , l जीप से उतरा तो सामने ही बच्चों का शव जिनका वस्त्र , शरीर , सब जला , स्थान स्थान से फटा , l कुछ स्त्रियाँ झुलसी हुई , सिर के सब बाल जले हुए , शरीर फटा , वस्त्रों कि कौन कहे ? कभी सौन्दर्य की प्रतिमा रही होंगी l किसने दिया आज उन्हें यह रूप -----वे उसी की ओर चीखती - चिल्लाती दौड़ी आ रहीं थीं l सैनिकों ने उन्हें रोक दिया l
उफ़ ! वह धरती पर बैठ गया , उसके सिर के भीतर से कोई चिल्ला रहा था --- " ये अबोध बच्चे , सुकुमार युवतियां , ये सब तुम्हारे शत्रु हैं ? तुमने इन्हें जला डाला , पिशाच कहीं के ! "
पिशाच ! नहीं वह सोचने लगा -- वह तो मनुष्य है l उसका मानसिक संतुलन डांवाडोल हो गया l
वह स्वदेश लौट आया l चिकित्सकों के अथक प्रयासों से पूरे तीन महीने में वह सामान्य हो सका अब उसके मन में एक ही धुन थी --- वह मनुष्य बनेगा , दो पांवों पर चलने वाला जानवर नहीं l मदारी के हाथ बन्दर को वस्त्र - आभूषण से सजा देते हैं , पर इससे वह मनुष्य नहीं हो जाता l
वह चल पड़ा अमेरिका से दक्षिण अफ्रीका कि ओर--- मनुष्य बनने l जाते समय किसी ने सवाल किया ---- क्या है मनुष्य ? " हड्डी , खून , मांस . विष्ठा के ढेर को मनुष्य नाम मत दो l
यह तो अंत:करण में छलछलाती उस संवेदना का नाम है जो मानवता कि कराहटें सुन बेचैन हो सके , अपना सर्वस्व दे डालने के लिए विकल हो जाये l "
कभी का स्क्वार्डन लीडर चार्ल्स ग्रोव अफ्रीका के जुलू निवासियों का फादर ग्रोव हो गया l वहां उसने द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभवों को ' आहत मानवता कि कराहटों ' के नाम से संजोया l
वह था स्क्वार्डन लीडर चार्ल्स ग्रोव l जो बमवर्षक से बम गिराकर , धुंए व लपटों के अंगार को देखकर खुशी से सोच रहा था कि तारीख 27 जुलाई 1945 कितनी भाग्यशाली है जिसने उसे ' ओकिनावा ' को ध्वस्त करने का श्रेय दिया l द्वितीय विश्व युद्ध कि सेनाओं के कमांडर इन चीफ जनरल मैक आर्थर ने उसे बधाई सन्देश भेजा l चार्ल्स ग्रोव ने अफसर से उस चौकी को देखने कि अनुमति मांगी जिस पर आक्रमण कर अपने अधिकार में ले लिया था l ' अवश्य ' अनुमति मिल गई जीप से जाने की l
ओह ! उसे तो रास्ते में ही मूर्छा सी आने लगी , दारुण चीत्कार , जलते हुए मांस कि दुर्गन्ध , से सांस घुट जाती थी , उसने ओह ! जीते - जागते मनुष्यों को भून दिया , l जीप से उतरा तो सामने ही बच्चों का शव जिनका वस्त्र , शरीर , सब जला , स्थान स्थान से फटा , l कुछ स्त्रियाँ झुलसी हुई , सिर के सब बाल जले हुए , शरीर फटा , वस्त्रों कि कौन कहे ? कभी सौन्दर्य की प्रतिमा रही होंगी l किसने दिया आज उन्हें यह रूप -----वे उसी की ओर चीखती - चिल्लाती दौड़ी आ रहीं थीं l सैनिकों ने उन्हें रोक दिया l
उफ़ ! वह धरती पर बैठ गया , उसके सिर के भीतर से कोई चिल्ला रहा था --- " ये अबोध बच्चे , सुकुमार युवतियां , ये सब तुम्हारे शत्रु हैं ? तुमने इन्हें जला डाला , पिशाच कहीं के ! "
पिशाच ! नहीं वह सोचने लगा -- वह तो मनुष्य है l उसका मानसिक संतुलन डांवाडोल हो गया l
वह स्वदेश लौट आया l चिकित्सकों के अथक प्रयासों से पूरे तीन महीने में वह सामान्य हो सका अब उसके मन में एक ही धुन थी --- वह मनुष्य बनेगा , दो पांवों पर चलने वाला जानवर नहीं l मदारी के हाथ बन्दर को वस्त्र - आभूषण से सजा देते हैं , पर इससे वह मनुष्य नहीं हो जाता l
वह चल पड़ा अमेरिका से दक्षिण अफ्रीका कि ओर--- मनुष्य बनने l जाते समय किसी ने सवाल किया ---- क्या है मनुष्य ? " हड्डी , खून , मांस . विष्ठा के ढेर को मनुष्य नाम मत दो l
यह तो अंत:करण में छलछलाती उस संवेदना का नाम है जो मानवता कि कराहटें सुन बेचैन हो सके , अपना सर्वस्व दे डालने के लिए विकल हो जाये l "
कभी का स्क्वार्डन लीडर चार्ल्स ग्रोव अफ्रीका के जुलू निवासियों का फादर ग्रोव हो गया l वहां उसने द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभवों को ' आहत मानवता कि कराहटों ' के नाम से संजोया l
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