भय का सबसे घ्रणित पहलू अपने स्वार्थ के लिए , दूसरों पर छाये रहने की भावना से अधीनस्थ लोगों का शोषण करना है l वैराग्य शतक में भतृहरि ने भय की स्थिति का बड़ा सूक्ष्म विश्लेषण किया है ---- ' भोग में रोग का भय है , सत्ता में गिरने का भय , धन में चोरी होने का भय , सौन्दर्य में बुढ़ापे का भय , शरीर में मृत्यु का भय l इस तरह संसार में सब कुछ भय से युक्त है l उनके अनुसार त्याग का मार्ग ही निर्भयता की अवस्था की ओर ले जाता है l
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