श्रवणकुमार के माता -पिता अंधे थे , पर उनकी इच्छा तीर्थ यात्रा की थी l श्रवणकुमार ने आश्चर्य से पूछा , जब आप लोगों को दीखता ही नहीं है और देव दर्शन कर नहीं सकेंगे , तो ऐसी यात्रा से क्या लाभ ? पिता ने कहा , तात ! तीर्थयात्रा का उद्देश्य देव दर्शन ही नहीं है , वरन लोगों के घर - घर गाँव - गाँव जाकर जन संपर्क साधना और धर्मोपदेश करना है l यह कार्य हम लोग बिना नेत्रों के भी कर सकते है l इनसे इन दिनों जो निरर्थक समय बीतता है , उसकी सार्थकता बन पड़ेगी l
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