बुद्धि तो सहज रूप में सभी मनुष्यों को प्राप्त होती है --- किसी को कम किसी को ज्यादा l बुद्धि प्राप्त होने से भी अधिक महत्वपूर्ण है -- सद्बुद्धि का प्राप्त होना l बुद्धि यदि भ्रष्ट होकर कुमार्गगामी बन जाये तो वह व्यक्ति का स्वयं का पतन तो करती ही है , उसके क्रिया - कलाप समाज को भी क्षति पहुंचाते हैं l
मनुष्य यदि सद्बुद्धि संपन्न हो तो वह अपना निज का कल्याण करने के साथ - साथ समाज को भी अपनी विभूतियों से लाभान्वित करता है l सद्बुद्धि ही संसार के समस्त कार्यों में प्रकाशित है l
लार्ड कर्जन हिन्दुस्तान के वायसराय थे l श्री आशुतोष मुखर्जी ( श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता ) तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति थे l उनके निजी संग्रह की 80,000 किताबें उनके आवास में थीं l बड़े विद्वान थे l लार्ड कर्जन उनसे बड़े प्रभावित थे l एक बार लार्ड कर्जन ने उनसे कहा ---- " आपको फेलोशिप लेने इंग्लैंड जाना है l "
उनकी माँ ने मना कर दिया तो श्री आशुतोष मुखर्जी ने वायसराय को साफ मना कर दिया और कहा --- " माना, हिन्दुस्तान का वायसराय कह रहा है , पर मेरे लिए महत्वपूर्ण मेरी माँ हैं l " वे नहीं गए l वसीयत में वे सारी किताबें अपने विश्वविद्यालय को दान में दे गए l
मनुष्य यदि सद्बुद्धि संपन्न हो तो वह अपना निज का कल्याण करने के साथ - साथ समाज को भी अपनी विभूतियों से लाभान्वित करता है l सद्बुद्धि ही संसार के समस्त कार्यों में प्रकाशित है l
लार्ड कर्जन हिन्दुस्तान के वायसराय थे l श्री आशुतोष मुखर्जी ( श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता ) तब कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति थे l उनके निजी संग्रह की 80,000 किताबें उनके आवास में थीं l बड़े विद्वान थे l लार्ड कर्जन उनसे बड़े प्रभावित थे l एक बार लार्ड कर्जन ने उनसे कहा ---- " आपको फेलोशिप लेने इंग्लैंड जाना है l "
उनकी माँ ने मना कर दिया तो श्री आशुतोष मुखर्जी ने वायसराय को साफ मना कर दिया और कहा --- " माना, हिन्दुस्तान का वायसराय कह रहा है , पर मेरे लिए महत्वपूर्ण मेरी माँ हैं l " वे नहीं गए l वसीयत में वे सारी किताबें अपने विश्वविद्यालय को दान में दे गए l
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