' मनुष्य का आंतरिक स्तर ऊँचा उठे बिना उसे उत्तम स्थिति का लाभ मिलना संभव नहीं हो सकता l '
संसार में अनेक लोग हैं जो धन , वैभव , पद , ज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तर पर पहुँच जाते हैं किन्तु आंतरिक स्तर निम्न होने के कारण उनके क्रिया - कलाप , उनका आचरण निम्न कोटि का ही रहता है l इस संबंध में पुराण की एक कथा है ----------
कीचड़ में लोटते और गंदगी चाटते उस शूकर को घिनौना जीवन जीते देख कर नारदजी को बड़ी दया आई l वे उस शूकर के पास पहुंचे और स्नेहपूर्वक बोले --- " इस घिनौनी रीति से जीवन जीना अच्छा नहीं है , चलो तुम्हे स्वर्ग पहुंचा दें l "
नारदजी की बात सुनकर वराह उनके पीछे - पीछे चलने लगा , रास्ते में उसे स्वर्ग के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई तो पूछ बैठा ---- " वहां खाने , लोटने और भोगने की क्या - क्या वस्तुएं हैं ? "
नारदजी उसे स्वर्ग का मनोरम वर्णन विस्तार से बताने लगे l उनकी बात पूरी हो गई तो उसने दूनी जिज्ञासा से पूछा ---- " खाने के लिए गंदगी , लोटने के लिए कीचड़ और सहचर्या के लिए वराहकुल है या नहीं ? "
नारदजी ने कहा ---- " मूर्ख ! इन निकम्मी चीजों की वहां क्या जरुरत है ? वहां तो देवताओं के अनुरूप वातावरण है और वैसे ही श्रेष्ठ पदार्थ सुसज्जित हैं l "
वराह को नारदजी के उत्तर से कोई समाधान नहीं मिला l वह कह रहा था -- भला गंदगी , गंधयुक्त कीचड़ और वराहकुल के बिना भी कोई सुख मिल सकता है ?
शूकर ने आगे चलने से इनकार कर दिया और वह वापस लौट पड़ा l
' मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है ---- ह्रदय की पवित्रता , आंतरिक श्रेष्ठता l '
संसार में अनेक लोग हैं जो धन , वैभव , पद , ज्ञान आदि विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तर पर पहुँच जाते हैं किन्तु आंतरिक स्तर निम्न होने के कारण उनके क्रिया - कलाप , उनका आचरण निम्न कोटि का ही रहता है l इस संबंध में पुराण की एक कथा है ----------
कीचड़ में लोटते और गंदगी चाटते उस शूकर को घिनौना जीवन जीते देख कर नारदजी को बड़ी दया आई l वे उस शूकर के पास पहुंचे और स्नेहपूर्वक बोले --- " इस घिनौनी रीति से जीवन जीना अच्छा नहीं है , चलो तुम्हे स्वर्ग पहुंचा दें l "
नारदजी की बात सुनकर वराह उनके पीछे - पीछे चलने लगा , रास्ते में उसे स्वर्ग के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई तो पूछ बैठा ---- " वहां खाने , लोटने और भोगने की क्या - क्या वस्तुएं हैं ? "
नारदजी उसे स्वर्ग का मनोरम वर्णन विस्तार से बताने लगे l उनकी बात पूरी हो गई तो उसने दूनी जिज्ञासा से पूछा ---- " खाने के लिए गंदगी , लोटने के लिए कीचड़ और सहचर्या के लिए वराहकुल है या नहीं ? "
नारदजी ने कहा ---- " मूर्ख ! इन निकम्मी चीजों की वहां क्या जरुरत है ? वहां तो देवताओं के अनुरूप वातावरण है और वैसे ही श्रेष्ठ पदार्थ सुसज्जित हैं l "
वराह को नारदजी के उत्तर से कोई समाधान नहीं मिला l वह कह रहा था -- भला गंदगी , गंधयुक्त कीचड़ और वराहकुल के बिना भी कोई सुख मिल सकता है ?
शूकर ने आगे चलने से इनकार कर दिया और वह वापस लौट पड़ा l
' मनुष्य जीवन का अक्षय श्रंगार है ---- ह्रदय की पवित्रता , आंतरिक श्रेष्ठता l '
No comments:
Post a Comment