स्वामी विवेकानन्द ने अपने गुरु भाइयों की ओर देखते हुए राखाल महाराज से कहा था ---- " राखाल ! आज रात्रि हमें दिव्य दर्शन हुआ , इसमें हमने अपने देश भारत के अभ्युदय को देखा l सुदीर्घ रजनी अब समाप्त होती हुई जान पड़ती है l निद्रित भारत अब जागने लगा है l मानो हिमालय के प्राणप्रद वायु स्पर्श से शिथिल प्राय अस्थि -मांस में प्राण - संचार हो रहा है ------- अब उसे कोई रोक नहीं सकता है l वह बोल रहे थे ------ ' अपना नवीन भारत निकल पड़ेगा ---- झाड़ियों , जंगलों , पहाड़ों पर्वतों से l इन लोगों ने हजारों वर्षों तक नीरव अत्याचार सहन किया है , उससे पाई है , अपूर्व सहनशीलता l सनातन दुःख उठाया है , जिससे पाई है , अटल जीवनीशक्ति l यही लोग अपने नवीन भारत के निर्माता होंगे l l "
स्वामी विवेकानन्द का जीवन अपार कष्टों और दुःखों का आगार था l कष्ट और कठिनाइयों के भीषण मंजर से गुजरने वाले एवं अपने जीवन में इसे पल - पल एहसास करने वाले स्वामी विवेकानन्द अमरीकी प्रवास के दौरान 20 अगस्त 1893 को श्रीयुत आलासिंगा को एक पत्र में लिखते हैं ----- " जीवन भर मैं अनेक कष्ट उठाते आया हूँ l मैंने प्राणप्रिय आत्मीयों को एक प्रकार से अनाहार से मरते देखा है l लोगों ने मेरी हँसी और अवज्ञा की है और कपटी कहा है l ये सब वे ही लोग हैं जिन पर सहानुभूति करने से यह फल मिला l वत्स ! यह संसार दुःख का आगार तो है , पर यही महापुरुषों के लिए शिक्षालय का स्वरुप है l इस दुःख से ही सहानुभूति , सहिष्णुता और सर्वोपरि उस अदम्य दृढ़ इच्छाशक्ति का विकास होता है , जिसके बल से मनुष्य सारे जगत चूर - चूर हो जाने पर भी रत्तीभर भी नहीं हिलता l " एक अन्य पत्र में उन्होंने लिखा --- ' मैं तो स्वाभाविक दशा में अपनी वेदना , यातनाओं को आनंद के साथ ग्रहण करता हूँ l ----------- "
स्वामीजी के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ---- कभी भी न तो दुःख से घबराना चाहिए और न इनसे पलायन करना चाहिए तथा न ही कष्टों के कारणों को किसी अन्य पर आरोपित करना चाहिए l अपने कष्टों को शान्त और धैर्य पूर्वक झेल जाना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि रात के बाद दिन का उदय होता है l एक दिन दुःख अवश्य तिरोहित होगा और जीवन में सुख का सूर्य उदय होगा l
स्वामी विवेकानन्द का जीवन अपार कष्टों और दुःखों का आगार था l कष्ट और कठिनाइयों के भीषण मंजर से गुजरने वाले एवं अपने जीवन में इसे पल - पल एहसास करने वाले स्वामी विवेकानन्द अमरीकी प्रवास के दौरान 20 अगस्त 1893 को श्रीयुत आलासिंगा को एक पत्र में लिखते हैं ----- " जीवन भर मैं अनेक कष्ट उठाते आया हूँ l मैंने प्राणप्रिय आत्मीयों को एक प्रकार से अनाहार से मरते देखा है l लोगों ने मेरी हँसी और अवज्ञा की है और कपटी कहा है l ये सब वे ही लोग हैं जिन पर सहानुभूति करने से यह फल मिला l वत्स ! यह संसार दुःख का आगार तो है , पर यही महापुरुषों के लिए शिक्षालय का स्वरुप है l इस दुःख से ही सहानुभूति , सहिष्णुता और सर्वोपरि उस अदम्य दृढ़ इच्छाशक्ति का विकास होता है , जिसके बल से मनुष्य सारे जगत चूर - चूर हो जाने पर भी रत्तीभर भी नहीं हिलता l " एक अन्य पत्र में उन्होंने लिखा --- ' मैं तो स्वाभाविक दशा में अपनी वेदना , यातनाओं को आनंद के साथ ग्रहण करता हूँ l ----------- "
स्वामीजी के जीवन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि ---- कभी भी न तो दुःख से घबराना चाहिए और न इनसे पलायन करना चाहिए तथा न ही कष्टों के कारणों को किसी अन्य पर आरोपित करना चाहिए l अपने कष्टों को शान्त और धैर्य पूर्वक झेल जाना चाहिए और विश्वास रखना चाहिए कि रात के बाद दिन का उदय होता है l एक दिन दुःख अवश्य तिरोहित होगा और जीवन में सुख का सूर्य उदय होगा l
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