ईर्ष्यात्मक जीवन की यात्रा अधूरी सी होती है , जिसमे जो मिलता है , उसकी कद्र नहीं होती और जो नहीं मिल पाता, उसका विलाप चलता रहता है l इसलिए जरुरी यह है कि दूसरों की और न देखकर अपनी और देखा जाये , क्योंकि हर इनसान अपने आप में औरों से भिन्न है , विशेष है , उसकी जगह कोई नहीं ले सकता l ईर्ष्या तभी मन में प्रवेश करती है जब हमारी द्रष्टि तुलनात्मक होती है और हम उसमे खरे नहीं उतारते l इसलिए यदि तुलना ही करनी है तो अपने ही प्रयासों में करनी चाहिए कि हम पहले से बेहतर हैं या नहीं , तभी ईर्ष्या रूपी विष बीज को पनपने से रोका जा सकता है l
प्रसिद्द अंग्रेजी साहित्यकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे से किसी ने कहा ---- " मैंने आज तक आप जैसा आदर्श दूसरा नहीं देखा l सबकी तुलना में आप सबसे सज्जन , मिलनसार , विनम्र और बुद्धिमान हैं l इस लिए मेरे लिए आप आदर्श हैं l "
हेमिंग्वे ने उत्तर दिया -- " मित्र ! इनसान के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि अन्य व्यक्तियों की तुलना में बेहतर इनसान होना नहीं , बल्कि अपने पूर्व जीवन की तुलना में बेहतर इन्सान होना है l मैं कल जैसा व्यक्ति था , यदि आज उससे बेहतर हूँ तो मैं अपनी द्रष्टि में आदर्श हूँ , अन्यथा इस मूल्यांकन का कोई आधार नहीं है l "
प्रसिद्द अंग्रेजी साहित्यकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे से किसी ने कहा ---- " मैंने आज तक आप जैसा आदर्श दूसरा नहीं देखा l सबकी तुलना में आप सबसे सज्जन , मिलनसार , विनम्र और बुद्धिमान हैं l इस लिए मेरे लिए आप आदर्श हैं l "
हेमिंग्वे ने उत्तर दिया -- " मित्र ! इनसान के जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि अन्य व्यक्तियों की तुलना में बेहतर इनसान होना नहीं , बल्कि अपने पूर्व जीवन की तुलना में बेहतर इन्सान होना है l मैं कल जैसा व्यक्ति था , यदि आज उससे बेहतर हूँ तो मैं अपनी द्रष्टि में आदर्श हूँ , अन्यथा इस मूल्यांकन का कोई आधार नहीं है l "
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