' मुर्दे का सहज धर्म है निष्क्रियता , निष्ठुरता l मुर्दा यदि सक्रिय भी हो तो सड़न और बीमारी फैलाएगा l पर जीवन्त व्यक्ति तो वही है , जो मानव - मात्र की वेदना के प्रति संवेदनशील हो l '
बात उन दिनों की है ----- महान संगीतकार पेडरेवस्की संगीत आयोजन में भाग लेने पोलैंड से अमेरिका आये l टिकट की बिक्री का और आयोजन का सारा कार्यभार एक साधारण लुहार के लड़के को दिया l उनकी भावना थी कि गरीब बालक की कुछ आर्थिक सहायता हो जाएगी l पर अनेक कारणों से टिकट कम बिकी , श्रोता कम आये l उस लड़के के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं l हाथ में थोड़े से नोट लिए वह संगीतकार के पास गया l उन्होंने हाथ पकड़ कर स्नेह से अपने बिस्तर पर बैठाया , काफी पिलाई l लड़के में कुछ हिम्मत आई , उसने नोटों की गड्डी उनके हाथ में थमाई l
उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा कि हाल का किराया , बिजली का बिल चुक गया ?
लड़के ने कहा -- " नहीं ! टिकटों की बिक्री से केवल आठ सौ सैंतीस डालर मिले , जो आपके सामने हैं l ये आप लें , हाल का किराया आदि मैं धीरे - धीरे चुका दूंगा l "
" कैसे चुकाओगे ? " वे लुहार के लड़के की आर्थिक स्थिति को समझ रहे थे l उन्होंने कहा --- " तुम निराश मत हो , निराशा जीवन का शत्रु है l " उन्होंने उस नोट के बण्डल में अपनी और से कुछ बड़े नोट मिलाये और उस लड़के की जेब में रखते हुए कहा --- " इनमे से हाल का किराया और बिजली का बिल चुकाने के बाद इतना बच जायेगा कि तुम कोई नया धन्धा शुरू कर सको l "
उनकी इस अकल्पनीय उदारता से वह आश्चर्यचकित रह गया l उसने कहा ---- " आपका यह ---- अहसान --- मैं कभी ---- भुला ---- नहीं ----- l "
संगीतकार पेडरेवस्की ने कहा ---- ' यह अहसान नहीं , जीवन्त मनुष्य का फर्ज है l यदि तुम इसे चुकाना चाहते हो तो स्वयं संवेदनशील बनना l जीवन चेतना का औरों में प्रसार करना l संवेदना का वितरण करना , जिसे तुम उदारता कहते हो इस परंपरा को निभाना l यदि तुम ऐसा कर सके तो समझना कि तुमने मेरा अहसान चुका दिया और मुझे अहसानमंद बना दिया l "
वक्त गुजरता गया l वह लड़का युवक बना l खानों के उद्दोग में उसने करोड़ों कमाए l प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर यूरोप की शोचनीय दशा में सुधार लाने के लिए अमेरिका ने जो दस करोड़ डालर का ऋण स्वीकृत किया , उसके वितरण का जिम्मा उसे ही मिला l ऋण वितरण करते समय उसने 1874 की अपनी पुरानी याद को संजोते हुए कहा --- " मैं यह अमेरिका का धन नहीं , पोलैंड के संगीतकार पेडरेवस्की की दी गई संवेदना को बाँट रहा हूँ l " संवेदनाओं के इस वितरक को अमेरिका वासियों ने राष्ट्रपति के सर्वोच्च आसन पर बैठाया l विश्व ने इसे ' हर्बर्ट हूवर ' के नाम से जाना l उनके राष्ट्रपति के कार्यकाल में 1930 की महान मंदी आई l इस मंदी से ग्रसित यूरोपीय राष्ट्रों ने ऋण चुकाने में असमर्थता व्यक्त की तो हूवर ने उदारतापूर्ण व्यवहार करते हुए कहा --- मेरा कार्य मानव धर्म का निर्वाह है , जीवन का प्रसार है l "
हूवर की भांति यदि मानव आज की विषाद पीड़ित मानवता पर स्वयं की संवेदनाओं का अमृत छिड़क सके , मानव धर्म का निर्वाह कर जीवन का प्रसार कर सके तो आने वाला कल उसे भी लोक नायक बनाये बिना न रहेगा l
बात उन दिनों की है ----- महान संगीतकार पेडरेवस्की संगीत आयोजन में भाग लेने पोलैंड से अमेरिका आये l टिकट की बिक्री का और आयोजन का सारा कार्यभार एक साधारण लुहार के लड़के को दिया l उनकी भावना थी कि गरीब बालक की कुछ आर्थिक सहायता हो जाएगी l पर अनेक कारणों से टिकट कम बिकी , श्रोता कम आये l उस लड़के के चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं l हाथ में थोड़े से नोट लिए वह संगीतकार के पास गया l उन्होंने हाथ पकड़ कर स्नेह से अपने बिस्तर पर बैठाया , काफी पिलाई l लड़के में कुछ हिम्मत आई , उसने नोटों की गड्डी उनके हाथ में थमाई l
उन्होंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा कि हाल का किराया , बिजली का बिल चुक गया ?
लड़के ने कहा -- " नहीं ! टिकटों की बिक्री से केवल आठ सौ सैंतीस डालर मिले , जो आपके सामने हैं l ये आप लें , हाल का किराया आदि मैं धीरे - धीरे चुका दूंगा l "
" कैसे चुकाओगे ? " वे लुहार के लड़के की आर्थिक स्थिति को समझ रहे थे l उन्होंने कहा --- " तुम निराश मत हो , निराशा जीवन का शत्रु है l " उन्होंने उस नोट के बण्डल में अपनी और से कुछ बड़े नोट मिलाये और उस लड़के की जेब में रखते हुए कहा --- " इनमे से हाल का किराया और बिजली का बिल चुकाने के बाद इतना बच जायेगा कि तुम कोई नया धन्धा शुरू कर सको l "
उनकी इस अकल्पनीय उदारता से वह आश्चर्यचकित रह गया l उसने कहा ---- " आपका यह ---- अहसान --- मैं कभी ---- भुला ---- नहीं ----- l "
संगीतकार पेडरेवस्की ने कहा ---- ' यह अहसान नहीं , जीवन्त मनुष्य का फर्ज है l यदि तुम इसे चुकाना चाहते हो तो स्वयं संवेदनशील बनना l जीवन चेतना का औरों में प्रसार करना l संवेदना का वितरण करना , जिसे तुम उदारता कहते हो इस परंपरा को निभाना l यदि तुम ऐसा कर सके तो समझना कि तुमने मेरा अहसान चुका दिया और मुझे अहसानमंद बना दिया l "
वक्त गुजरता गया l वह लड़का युवक बना l खानों के उद्दोग में उसने करोड़ों कमाए l प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति पर यूरोप की शोचनीय दशा में सुधार लाने के लिए अमेरिका ने जो दस करोड़ डालर का ऋण स्वीकृत किया , उसके वितरण का जिम्मा उसे ही मिला l ऋण वितरण करते समय उसने 1874 की अपनी पुरानी याद को संजोते हुए कहा --- " मैं यह अमेरिका का धन नहीं , पोलैंड के संगीतकार पेडरेवस्की की दी गई संवेदना को बाँट रहा हूँ l " संवेदनाओं के इस वितरक को अमेरिका वासियों ने राष्ट्रपति के सर्वोच्च आसन पर बैठाया l विश्व ने इसे ' हर्बर्ट हूवर ' के नाम से जाना l उनके राष्ट्रपति के कार्यकाल में 1930 की महान मंदी आई l इस मंदी से ग्रसित यूरोपीय राष्ट्रों ने ऋण चुकाने में असमर्थता व्यक्त की तो हूवर ने उदारतापूर्ण व्यवहार करते हुए कहा --- मेरा कार्य मानव धर्म का निर्वाह है , जीवन का प्रसार है l "
हूवर की भांति यदि मानव आज की विषाद पीड़ित मानवता पर स्वयं की संवेदनाओं का अमृत छिड़क सके , मानव धर्म का निर्वाह कर जीवन का प्रसार कर सके तो आने वाला कल उसे भी लोक नायक बनाये बिना न रहेगा l
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