विचारों की शक्ति बड़ी प्रबल मानी गई है l जितनी भी बड़ी क्रांतियाँ हुईं , वे सशक्त विचारों द्वारा ही हुई हैं l साम्यवाद - समाजवाद तथा नाजीवाद -- कार्ल मार्क्स , रूसो एवं हिटलर द्वारा फैलाये गए विचारों के सशक्त प्रस्तुतीकरण द्वारा ही विस्तार पा सके l नीत्से ने भी अपनी नास्तिकवाद की विचारधारा को अपने साहित्य द्वारा फैलाया l
विचार क्रांति कर देते हैं , जमाने को बदल देते हैं l
आज साम्यवाद - समाजवाद और नाजीवाद -- इन तीनों में से कोई भी वाद अपना स्थान समाज में चिरस्थायी नहीं रखने के कारण जिन्दा न रह सके तो उसका मूल कारण है --- उसका आधार नैतिकता - अध्यात्मवाद न होना l जहाँ भी आधार अध्यात्म प्रधान होगा , वह प्रभाव फैलकर ही रहेगा l चाहे उस विचार का प्रवर्तक मौन कक्ष में बैठा रहे , अपनी लेखनी चलाता रहे अथवा कठोर तप में लीन रहे , विचार उसकी दीवारों को फोड़कर निकलेंगे और क्रांति करेंगे l
आज के इस भौतिकवादी युग में जीवन में आसुरी सम्पदा बढ़ती जा रही है l छल - प्रपंच - दिखावा बढ़ता जा रहा है l स्वार्थ , धन और पद के लालच में मनुष्य संवेदनहीन हो गया है l आज के समय में अपनी समस्याओं को लेकर किसी के आगे रोना , दुःख बताना ऐसा है जैसे ' अंधे के आगे रोवे अपना दीदा खोवे " l
असुरता से जीतने के लिए हमें दैवी सम्पदा को जीवन में उतारने की जरुरत है l इसके लिए कर्मकांड , बाह्य आडम्बर जरुरी नहीं है l हम कर्मठ बने , परिश्रमी बने l दैवीय गुणों को अपने जीवन में उतारें l आज के युग में भी यह संभव है , जो सद्गुणों को अपनाते हैं , उनके जीवन में शांति है , प्रगति भी है और सुख - समृद्धि भी है l
आज की शिक्षा से हमें केवल पुस्तकीय ज्ञान मिलता है , यह शिक्षा हमें जीवन जीना नहीं सिखाती l जब हम सद्गुणों को अपने जीवन में उतारते हैं , सच्चे अर्थ में अध्यात्मिक बनते हैं तब दैवीय कृपा से हमारा विवेक जाग्रत है , जीवन को सही दिशा मिलती है और तब हमारी शिक्षा भी सार्थक हो जाती है l
विचार क्रांति कर देते हैं , जमाने को बदल देते हैं l
आज साम्यवाद - समाजवाद और नाजीवाद -- इन तीनों में से कोई भी वाद अपना स्थान समाज में चिरस्थायी नहीं रखने के कारण जिन्दा न रह सके तो उसका मूल कारण है --- उसका आधार नैतिकता - अध्यात्मवाद न होना l जहाँ भी आधार अध्यात्म प्रधान होगा , वह प्रभाव फैलकर ही रहेगा l चाहे उस विचार का प्रवर्तक मौन कक्ष में बैठा रहे , अपनी लेखनी चलाता रहे अथवा कठोर तप में लीन रहे , विचार उसकी दीवारों को फोड़कर निकलेंगे और क्रांति करेंगे l
आज के इस भौतिकवादी युग में जीवन में आसुरी सम्पदा बढ़ती जा रही है l छल - प्रपंच - दिखावा बढ़ता जा रहा है l स्वार्थ , धन और पद के लालच में मनुष्य संवेदनहीन हो गया है l आज के समय में अपनी समस्याओं को लेकर किसी के आगे रोना , दुःख बताना ऐसा है जैसे ' अंधे के आगे रोवे अपना दीदा खोवे " l
असुरता से जीतने के लिए हमें दैवी सम्पदा को जीवन में उतारने की जरुरत है l इसके लिए कर्मकांड , बाह्य आडम्बर जरुरी नहीं है l हम कर्मठ बने , परिश्रमी बने l दैवीय गुणों को अपने जीवन में उतारें l आज के युग में भी यह संभव है , जो सद्गुणों को अपनाते हैं , उनके जीवन में शांति है , प्रगति भी है और सुख - समृद्धि भी है l
आज की शिक्षा से हमें केवल पुस्तकीय ज्ञान मिलता है , यह शिक्षा हमें जीवन जीना नहीं सिखाती l जब हम सद्गुणों को अपने जीवन में उतारते हैं , सच्चे अर्थ में अध्यात्मिक बनते हैं तब दैवीय कृपा से हमारा विवेक जाग्रत है , जीवन को सही दिशा मिलती है और तब हमारी शिक्षा भी सार्थक हो जाती है l
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