मनुष्य का यह स्वभाव है कि वह सरलता से बहुत कुछ पाना चाहता है l ईश्वर सर्वशक्तिमान है उसकी कृपा माला घुमाकर , फूल - प्रसाद चढ़ाकर और सबसे बढ़कर संतों और धर्म के ठेकेदारों को खुश कर के मिल जाये तो क्या बुराई है , ऐसी सोच के कारण ही धर्म का सच्चा स्वरुप खो गया और आज धर्म ने भी एक व्यवसाय का रूप ले लिया , जिसमे लाखों लोगों को रोजगार मिल जाता है l जिसको कहीं कोई रोजगार नहीं है उसके लिए यह क्षेत्र खुला है l
पूजा - पाठ , भजन - पूजन , कर्मकांड आदि सब कुछ बहुत अच्छा , पवित्र भावना से यह सब कुछ होने से वातावरण शुद्ध होता है लेकिन आज की सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज पवित्र भावना का अभाव है l स्वार्थ , लालच , अनीति , अत्याचार , शोषण , कर्तव्य की चोरी जैसी दुष्प्रवृतियों , अनैतिक इच्छाओं की पूर्ति व्यक्ति धर्म की आड़ में ही करता है l
संसार में केवल पर्यावरण प्रदूषण नहीं है , विचारों और भावनाओं का प्रदूषण बहुत गहरा है l यदि कोई व्यक्ति बहुत दुष्ट , पापी है , कपटी है तो उसकी नकारात्मकता के कारण उसकी उपस्थिति ही कष्टकारक होती है , जब ऐसे लोगों की अधिकता हो जाती है तो पूरा वातावरण ही कितना कष्टकारी हो जाता है इसका अनुमान लगाया जा सकता है l l समाज में बढ़ते अपराध भी इसी का परिणाम है l
पूजा - पाठ , भजन - पूजन , कर्मकांड आदि सब कुछ बहुत अच्छा , पवित्र भावना से यह सब कुछ होने से वातावरण शुद्ध होता है लेकिन आज की सबसे बड़ी समस्या यही है कि आज पवित्र भावना का अभाव है l स्वार्थ , लालच , अनीति , अत्याचार , शोषण , कर्तव्य की चोरी जैसी दुष्प्रवृतियों , अनैतिक इच्छाओं की पूर्ति व्यक्ति धर्म की आड़ में ही करता है l
संसार में केवल पर्यावरण प्रदूषण नहीं है , विचारों और भावनाओं का प्रदूषण बहुत गहरा है l यदि कोई व्यक्ति बहुत दुष्ट , पापी है , कपटी है तो उसकी नकारात्मकता के कारण उसकी उपस्थिति ही कष्टकारक होती है , जब ऐसे लोगों की अधिकता हो जाती है तो पूरा वातावरण ही कितना कष्टकारी हो जाता है इसका अनुमान लगाया जा सकता है l l समाज में बढ़ते अपराध भी इसी का परिणाम है l
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