हर व्यक्ति के अन्दर अनंत सामर्थ्य भरी पड़ी है , वह चाहे तो उसके माध्यम से , जो भी असंभव दीख पड़ता है वह कर के दिखा दे l
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि मनुष्य स्वयं अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है l
मनुष्य स्वयं का मित्र बनकर सकारात्मक व आशावादी सोच से और अपने आत्मबल को बढाकर , जीवन की हर प्रतिकूलताओं से जूझकर सफल हो सकता है l
लेकिन आज मनुष्य परावलम्बी हो गया है l अपने जीवन की नाव ढोने के लिए दूसरों से आशाएं , अपेक्षा रखने वाला l अपने स्वार्थ के लिए व्यक्ति ने अध्यात्म की व्याख्या भी इसी प्रकार कर ली कि --- पात्रता के विकास पर ध्यान न देकर केवल बाह्य आडम्बर और कर्मकांड कर के ही ईश्वरीय अनुदान मिल जाएँ l
शबरी के घर भगवान गए और उससे मांग - मांग कर झूठे बेर खाए l वह अशिक्षित थी और साधना - विधान से अपरिचित थी फिर भी उसे इतना श्रेय मिला l भक्तों ने मातंग ऋषि से पूछा --- " हम लोग उस श्रेय और सम्मान से क्यों वंचित रहे ? "
ऋषि ने कहा ---- " हम लोग पूजन मात्र में अपनी सद्गति के लिए किए प्रयासों को भक्ति मानते रहे जबकि भगवान की द्रष्टि में सेवा - साधना श्रेष्ठ है l जिसमे छल - कपट नहीं है , अहंकार नहीं है वही भगवन को प्रिय है l शबरी ही है , रात - रात भर जागकर आश्रम से लेकर सरोवर तक कंटीला रास्ता साफ करती रही और सज्जनों का पथ प्रशस्त करने के लिए अपना अविज्ञात , निरहंकारी , भाव भरा योगदान प्रस्तुत करती रही l "
श्रीमद्भगवद्गीता में कहा गया है कि मनुष्य स्वयं अपना मित्र है और स्वयं ही अपना शत्रु है l
मनुष्य स्वयं का मित्र बनकर सकारात्मक व आशावादी सोच से और अपने आत्मबल को बढाकर , जीवन की हर प्रतिकूलताओं से जूझकर सफल हो सकता है l
लेकिन आज मनुष्य परावलम्बी हो गया है l अपने जीवन की नाव ढोने के लिए दूसरों से आशाएं , अपेक्षा रखने वाला l अपने स्वार्थ के लिए व्यक्ति ने अध्यात्म की व्याख्या भी इसी प्रकार कर ली कि --- पात्रता के विकास पर ध्यान न देकर केवल बाह्य आडम्बर और कर्मकांड कर के ही ईश्वरीय अनुदान मिल जाएँ l
शबरी के घर भगवान गए और उससे मांग - मांग कर झूठे बेर खाए l वह अशिक्षित थी और साधना - विधान से अपरिचित थी फिर भी उसे इतना श्रेय मिला l भक्तों ने मातंग ऋषि से पूछा --- " हम लोग उस श्रेय और सम्मान से क्यों वंचित रहे ? "
ऋषि ने कहा ---- " हम लोग पूजन मात्र में अपनी सद्गति के लिए किए प्रयासों को भक्ति मानते रहे जबकि भगवान की द्रष्टि में सेवा - साधना श्रेष्ठ है l जिसमे छल - कपट नहीं है , अहंकार नहीं है वही भगवन को प्रिय है l शबरी ही है , रात - रात भर जागकर आश्रम से लेकर सरोवर तक कंटीला रास्ता साफ करती रही और सज्जनों का पथ प्रशस्त करने के लिए अपना अविज्ञात , निरहंकारी , भाव भरा योगदान प्रस्तुत करती रही l "
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