दशानन रावण एक व्यक्ति नहीं विचारधारा है ---- कैसे उसने छल - कपट से सीताजी का अपहरण किया , अपने राक्षसों को भेजकर ऋषि - मुनियों के यज्ञ , हवन आदि पवित्र स्थल को अपवित्र किया , धन का एकत्रीकरण कर सोने की लंका खड़ी कर ली , अपने धन , अपनी शक्ति और अपनी विद्वता , अपने ज्ञान का दुरूपयोग किया l l यह विचारधारा विकृत थी , दुर्भाग्य से वर्तमान में इसी विकृत विचारधारा का प्रसार हो चुका है और होता जा रहा है l
इस विकृति से निपटने के लिए जरुरी है देश में वैसा ही स्वाभिमान और राष्ट्रीय चेतना जाग्रत हो जैसी कि 1857 के स्वाधीनता संग्राम के समय थी l अंग्रेज 1857 की हिन्दू - मुस्लिम एकता को देखकर हैरान और परेशान हो गए थे l सभी ने उस समय मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर को बादशाह माना था l यह वर्ष भारत की एकता और राष्ट्रीयता के नए मानकों से गढ़ा था l उस समय छोटी कही जाने वाली जाति के लोगों ने बड़े काम किये l
एक वीरांगना थीं --झलकारी बाई , जो जाति की कोरी थीं , लेकिन महारानी लक्ष्मीबाई उन्हें अपनी सहेली का मान देती थीं , उन्होंने रानी के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध संग्राम में कदम - से - कदम मिलाकर युद्ध किया l
ऐसे ही एक वीरनायक थे --- मातादीन भंगी , जिन्होंने बैरकपुर विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई l कानपुर - बिठूर के आसपास एक क्रांतिवीर थे --- गंगू बाबा , जो हरिजन थे और नाना साहब की सेना में नाकड़ची थे , ये पहलवान थे और अपने पहलवानों के साथ इस संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ भीषण युद्ध किया , पकड़े जाने पर अंग्रेजों ने इन्हें फांसी दे दी l
इस स्वाधीनता संग्राम के बाद देशवासियों को यह भरोसा हुआ कि गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ी जा सकती हैं l इस संग्राम के बाद अंग्रेजों ने भारतीयों पर कठोर नियंत्रण कर दिया किन्तु भारत को स्वाधीन कराने वाली मानसिकता को नहीं बदल सके l
इस विकृति से निपटने के लिए जरुरी है देश में वैसा ही स्वाभिमान और राष्ट्रीय चेतना जाग्रत हो जैसी कि 1857 के स्वाधीनता संग्राम के समय थी l अंग्रेज 1857 की हिन्दू - मुस्लिम एकता को देखकर हैरान और परेशान हो गए थे l सभी ने उस समय मुग़ल बादशाह बहादुरशाह जफर को बादशाह माना था l यह वर्ष भारत की एकता और राष्ट्रीयता के नए मानकों से गढ़ा था l उस समय छोटी कही जाने वाली जाति के लोगों ने बड़े काम किये l
एक वीरांगना थीं --झलकारी बाई , जो जाति की कोरी थीं , लेकिन महारानी लक्ष्मीबाई उन्हें अपनी सहेली का मान देती थीं , उन्होंने रानी के साथ अंग्रेजों के विरुद्ध संग्राम में कदम - से - कदम मिलाकर युद्ध किया l
ऐसे ही एक वीरनायक थे --- मातादीन भंगी , जिन्होंने बैरकपुर विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई l कानपुर - बिठूर के आसपास एक क्रांतिवीर थे --- गंगू बाबा , जो हरिजन थे और नाना साहब की सेना में नाकड़ची थे , ये पहलवान थे और अपने पहलवानों के साथ इस संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ भीषण युद्ध किया , पकड़े जाने पर अंग्रेजों ने इन्हें फांसी दे दी l
इस स्वाधीनता संग्राम के बाद देशवासियों को यह भरोसा हुआ कि गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ी जा सकती हैं l इस संग्राम के बाद अंग्रेजों ने भारतीयों पर कठोर नियंत्रण कर दिया किन्तु भारत को स्वाधीन कराने वाली मानसिकता को नहीं बदल सके l
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