पं. श्रीराम शर्मा आचार्य ने अखण्ड ज्योति में लिखा है कि ---- दुर्भाग्य से आज संगठन कुचक्र का पर्याय बन गए हैं l जिसमे फंसकर मानवीय शक्ति ही नहीं स्वयं मानवता भी रो - तड़पकर नष्ट होने के लिए विवश हो रही है l ' उन्ही के शब्दों में ----- " खेद इस बात का है कि मानव जाति ने छुट - पुट संगठन बनाने के अस्त - व्यस्त प्रयत्न तो किये पर जन समाज की एकता और संघ बद्धता पर ध्यान नहीं दिया l आधार और स्वार्थ अलग - अलग होने से वे वर्ग , वर्ण , देश , सम्प्रदाय आदि के आधार पर परस्पर टकराते रहे और संकट उत्पन्न करते रहे l किसी तरह निजी स्वार्थों के लिए मानवीय शक्ति के शोषण का षड्यंत्र है l जिसमे लिप्त कुछ चालाक और तिकड़मबाज व्यक्ति दूसरों की बुद्धि , श्रम , एवं धन का निजी महत्वाकांक्षा की पूर्ति के लिए बेरहमी से दुरूपयोग करते हैं l इसके परिणाम में घ्रणा और विद्वेष ही पनपते हैं और मानवीय समस्याएं समाप्त होने के स्थान पर बढ़ती ही जाती हैं l सच्चा और स्थिर लाभ तभी हो सकता है जब वे समग्र रूप से एक आधार पर संगठित हों l "
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