ऋषियों का , आचार्य का मत है कि जो व्यक्ति प्रत्येक रात्रि को सोते समय गायत्री मन्त्र का जप करे ( भगवत्स्मरण ) करे तो उसके जीवन की निद्रा से सम्बंधित समस्याएं , अनिद्रा आदि व्याधियाँ, बीमारियाँ समाप्त हो जाती हैं और अध्यात्म के क्षेत्र में भी आगे बढ़ते हैं l
इस सम्बन्ध में एक कथा है ----- एक व्यापारी था , वह व्यापार के सिलसिले में एक नगर से दूसरे नगर जाता था l इस बार वह अमरकंटक जा रहा था , रास्ते में सोच रहा था -- " मैंने जीवन पर्यंत पाप ही पाप किये हैं , मदिरापान , वेश्यागमन , मिथ्या भाषण में मैं सबसे आगे रहा l " ऐसा चिन्तन करते हुए वह अमरकंटक पहुँच गया l संयोगवश उस दिन शिवरात्रि थी l मंदिरों में अभिषेक , पूजन , अर्चन देखकर उसे विचित्र अनुभव हुए क्योंकि उसने कभी इस तरह के कार्य नहीं किये थे l यह सब देखकर उसे विलक्षण शांति का अनुभव हुआ l रात्रि का समय था , वह मंदिर के बाहर ही जमीन पर लेट गया l उसे अपने दूषित कर्मों पर दुःख हो रहा था , साथ ही मंदिर में होने वाले अभिषेक , अर्चन आदि से ईश्वर का पवित्र नाम उसके कानों से ह्रदय में जा रहा था l शीघ्र ही उसे गहरी नींद आ गई l वहां उसे एक काले नाग ने काट लिया l लोगों ने उसकी चेतना लौटाने के लिए अभिषेक का पवित्र जल उसके मुँह पर छींटा, किन्तु उसके प्राण निकल चुके थे l
चित्रगुप्त महाराज ने उसके कर्मों का लेखा पढ़ते हुए यमराज से कहा ---- " यह महान पापी है , इसे घोर नरक में कष्ट सहने के लिए डाला जाये l " किन्तु चित्रगुप्त , यमराज व दूतों को बहुत आश्चर्य हुआ कि नरक के कष्टों से उसे कोई कष्ट ही नहीं हुआ , वह तो शांत और सुरक्षित है l
उसी समय नारदजी आ गए , उन्होंने कहा --- " इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है l उसने निद्रा में भगवन शिव का चिंतन करते हुए प्राण त्यागे , उसके मन में अभिषेक , पूजन अर्चन के पवित्र भाव के साथ अपने दूषित कर्मों के लिए प्रायश्चित भाव होने के कारण उसका मन पवित्र है l इसलिए अब उसे नरक का कोई कष्ट नहीं है l " रात्रि को और अपने जीवन की अंतिम निद्रा को संवार लेने के कारण उसका कल्याण हुआ l
आचार्य कहते हैं -- ईश्वर को पवित्र भावना प्रिय है , लेटे - लेट भी मानसिक जप किया जा सकता है l
इस सम्बन्ध में एक कथा है ----- एक व्यापारी था , वह व्यापार के सिलसिले में एक नगर से दूसरे नगर जाता था l इस बार वह अमरकंटक जा रहा था , रास्ते में सोच रहा था -- " मैंने जीवन पर्यंत पाप ही पाप किये हैं , मदिरापान , वेश्यागमन , मिथ्या भाषण में मैं सबसे आगे रहा l " ऐसा चिन्तन करते हुए वह अमरकंटक पहुँच गया l संयोगवश उस दिन शिवरात्रि थी l मंदिरों में अभिषेक , पूजन , अर्चन देखकर उसे विचित्र अनुभव हुए क्योंकि उसने कभी इस तरह के कार्य नहीं किये थे l यह सब देखकर उसे विलक्षण शांति का अनुभव हुआ l रात्रि का समय था , वह मंदिर के बाहर ही जमीन पर लेट गया l उसे अपने दूषित कर्मों पर दुःख हो रहा था , साथ ही मंदिर में होने वाले अभिषेक , अर्चन आदि से ईश्वर का पवित्र नाम उसके कानों से ह्रदय में जा रहा था l शीघ्र ही उसे गहरी नींद आ गई l वहां उसे एक काले नाग ने काट लिया l लोगों ने उसकी चेतना लौटाने के लिए अभिषेक का पवित्र जल उसके मुँह पर छींटा, किन्तु उसके प्राण निकल चुके थे l
चित्रगुप्त महाराज ने उसके कर्मों का लेखा पढ़ते हुए यमराज से कहा ---- " यह महान पापी है , इसे घोर नरक में कष्ट सहने के लिए डाला जाये l " किन्तु चित्रगुप्त , यमराज व दूतों को बहुत आश्चर्य हुआ कि नरक के कष्टों से उसे कोई कष्ट ही नहीं हुआ , वह तो शांत और सुरक्षित है l
उसी समय नारदजी आ गए , उन्होंने कहा --- " इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है l उसने निद्रा में भगवन शिव का चिंतन करते हुए प्राण त्यागे , उसके मन में अभिषेक , पूजन अर्चन के पवित्र भाव के साथ अपने दूषित कर्मों के लिए प्रायश्चित भाव होने के कारण उसका मन पवित्र है l इसलिए अब उसे नरक का कोई कष्ट नहीं है l " रात्रि को और अपने जीवन की अंतिम निद्रा को संवार लेने के कारण उसका कल्याण हुआ l
आचार्य कहते हैं -- ईश्वर को पवित्र भावना प्रिय है , लेटे - लेट भी मानसिक जप किया जा सकता है l
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