प्राचीन काल में जब राजतन्त्र था , तब राजा वेश बदलकर राज्य में भ्रमण करते और सही स्थिति को समझकर अपनी प्रजा के कष्टों को दूर करने का प्रयास करते थे l ऐसे में कभी राजा को सामान्य जनों से महत्वपूर्ण शिक्षा भी मिल जाती थी l इस सम्बन्ध में एक कथा है -----
एक बार राजा जनमेजय वेश बदलकर भ्रमण करते हुए एक गाँव से गुजरे l वहां उन्होंने देखा कि कुछ किशोर खेल रहे हैं l उनमे से एक शासक बना है और अन्य सभासद l शासक बना किशोर जिसका नाम है ' कुलेश ' सभासदों को संबोधित करते हुए कह रहा है ---- " सभासदों ! जिस राज्य के कर्मचारीगण वैभव - विलास में डूबे रहते हैं , उसका राजा कितना ही नेक और प्रजावत्सल क्यों न हो , उस राज्य की प्रजा कभी सुखी नहीं रहती l मैं चाहता हूँ , जो भूल जनमेजय के राज्याधिकारी कर रहे हैं , वह आप लोग न करें , ताकि मेरी प्रजा असंतुष्ट न हो l आप सबको वैभव - विलास का जीवन छोड़कर त्यागपूर्वक जीवन जीना चाहिए l जो ऐसा नहीं कर सकता , वह अभी शासन सेवा से अलग हो जाये l "
राजा जनमेजय उस किशोर के गंभीर चिंतन से बहुत प्रभावित हुए और उसे महामंत्री का पद प्रदान किया l उसके महामंत्रित्व काल में अन्य मंत्रियों , सामंतों एवं राज्य - कर्मचारियों के लिए आचार - संहिता बनाई गई , अतिरिक्त आय के स्रोत बंद कर दिए गए , इससे बचा हुआ धन प्रजा की भलाई में लगने लगा , कर्मचारी व जनता सभी के लिए परिश्रम अनिवार्य कर दिया गया l समस्त प्रजा में खुशहाली छा गई l
एक बार राजा जनमेजय वेश बदलकर भ्रमण करते हुए एक गाँव से गुजरे l वहां उन्होंने देखा कि कुछ किशोर खेल रहे हैं l उनमे से एक शासक बना है और अन्य सभासद l शासक बना किशोर जिसका नाम है ' कुलेश ' सभासदों को संबोधित करते हुए कह रहा है ---- " सभासदों ! जिस राज्य के कर्मचारीगण वैभव - विलास में डूबे रहते हैं , उसका राजा कितना ही नेक और प्रजावत्सल क्यों न हो , उस राज्य की प्रजा कभी सुखी नहीं रहती l मैं चाहता हूँ , जो भूल जनमेजय के राज्याधिकारी कर रहे हैं , वह आप लोग न करें , ताकि मेरी प्रजा असंतुष्ट न हो l आप सबको वैभव - विलास का जीवन छोड़कर त्यागपूर्वक जीवन जीना चाहिए l जो ऐसा नहीं कर सकता , वह अभी शासन सेवा से अलग हो जाये l "
राजा जनमेजय उस किशोर के गंभीर चिंतन से बहुत प्रभावित हुए और उसे महामंत्री का पद प्रदान किया l उसके महामंत्रित्व काल में अन्य मंत्रियों , सामंतों एवं राज्य - कर्मचारियों के लिए आचार - संहिता बनाई गई , अतिरिक्त आय के स्रोत बंद कर दिए गए , इससे बचा हुआ धन प्रजा की भलाई में लगने लगा , कर्मचारी व जनता सभी के लिए परिश्रम अनिवार्य कर दिया गया l समस्त प्रजा में खुशहाली छा गई l
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