23 December 2018

WISDOM ---- जीवन एक व्यवसाय है , इसमें परमात्मा के साथ साझेदारी में घाटे की संभावना नहीं है

   अहंकारी    स्वयं  को  कर्ता  मानता  है  --- जैसे  वही   ब्रह्मा , वही  विष्णु   और   वही    शिव  है   l   अहंकार  उसके  विवेक  का   हरण  कर  लेता  है   l  इस  अहंकार  के  कारण  इतना  बलशाली  होने  पर  भी  रावण  पराजित  हुआ  l   लेकिन  जो  ईश्वर  से  साझेदारी  करते  हैं  ,  जिनमे  कर्तापन  का  अभिमान  नहीं  होता  ,  स्वयं  को  ईश्वर  के  हाथों  का  यंत्र  मानते  हैं  ,  उनके  जीवन  में असफलता  की  कोई  संभावना  नहीं  होती  l                                महाभारत  का  युद्ध  आरम्भ  होने  से  पहले   अर्जुन  और  दुर्योधन  दोनों  ही  भगवान  श्रीकृष्ण  के  पास  मदद  हेतु  गए    l  एक  और   भगवान  श्रीकृष्ण  थे   जो  युद्ध  में  शस्त्र  नहीं  उठाएंगे  और  दूसरी  और   उनकी  विशाल  ,  सुसज्जित  सेना   l  अर्जुन   में  समर्पण  भाव  था  , उसने    सेना  की  और  नहीं  देखा   l भगवान  श्रीकृष्ण   के  हाथों  में  अपने  जीवन  डोर  सौंप दी  l  दुर्योधन  अहंकारी  था  ,  स्वयं  को  सब  कुछ  समझता  था  ,  श्रीकृष्ण  विशाल  सेना  पाकर  गर्व  से  फूला  नहीं  समाया  l
        कर्ण  ने  दुर्योधन  से मित्रता  निभाई  ,  इस  कारण  वह  भी   सेना  के  साथ  था  ,  ईश्वर  के  संरक्षण  से  वंचित  रह  गया  l
  महाभारत  का  युद्ध  समाप्त  हुआ   l  महर्षि  जरत्कारू  के  आश्रम  में    दो  शिष्यों  में  चर्चा  चल  रही  थी   कि---- ' कर्ण  युद्ध  विद्दा  में  अर्जुन  से  श्रेष्ठ  थे ,  दानियों  में  भी  अग्रगण्य  थे  ,  आत्मबल  के  धनी  थे  ,  फिर  भी  क्यों  अर्जुन  से  हार  गए  ?   गुरदेव  ने  स्पष्ट  किया ---- ' अर्जुन  को  नर  और  कृष्ण  को   नारायण  कहा  गया  है   l   नर - नारायण  का  जोड़ा  ही  असुरता  से  जीतता  है   l 
  कर्ण  अर्जुन  की  अपेक्षा  श्रेष्ठ  नर   भले  हो  ,  पर  उसने  अपने  आपको  ही  सब  कुछ  माना  ,  नारायण  को  पूरक  नहीं  बनाया  ,  इसलिए  पूरक  सत्ता  का लाभ  उसे  नहीं  मिल  सका   l  वही  उसकी  पराजय  का  मुख्य  कारण  रहा   l  '
                

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