अहंकारी स्वयं को कर्ता मानता है --- जैसे वही ब्रह्मा , वही विष्णु और वही शिव है l अहंकार उसके विवेक का हरण कर लेता है l इस अहंकार के कारण इतना बलशाली होने पर भी रावण पराजित हुआ l लेकिन जो ईश्वर से साझेदारी करते हैं , जिनमे कर्तापन का अभिमान नहीं होता , स्वयं को ईश्वर के हाथों का यंत्र मानते हैं , उनके जीवन में असफलता की कोई संभावना नहीं होती l महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले अर्जुन और दुर्योधन दोनों ही भगवान श्रीकृष्ण के पास मदद हेतु गए l एक और भगवान श्रीकृष्ण थे जो युद्ध में शस्त्र नहीं उठाएंगे और दूसरी और उनकी विशाल , सुसज्जित सेना l अर्जुन में समर्पण भाव था , उसने सेना की और नहीं देखा l भगवान श्रीकृष्ण के हाथों में अपने जीवन डोर सौंप दी l दुर्योधन अहंकारी था , स्वयं को सब कुछ समझता था , श्रीकृष्ण विशाल सेना पाकर गर्व से फूला नहीं समाया l
कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता निभाई , इस कारण वह भी सेना के साथ था , ईश्वर के संरक्षण से वंचित रह गया l
महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ l महर्षि जरत्कारू के आश्रम में दो शिष्यों में चर्चा चल रही थी कि---- ' कर्ण युद्ध विद्दा में अर्जुन से श्रेष्ठ थे , दानियों में भी अग्रगण्य थे , आत्मबल के धनी थे , फिर भी क्यों अर्जुन से हार गए ? गुरदेव ने स्पष्ट किया ---- ' अर्जुन को नर और कृष्ण को नारायण कहा गया है l नर - नारायण का जोड़ा ही असुरता से जीतता है l
कर्ण अर्जुन की अपेक्षा श्रेष्ठ नर भले हो , पर उसने अपने आपको ही सब कुछ माना , नारायण को पूरक नहीं बनाया , इसलिए पूरक सत्ता का लाभ उसे नहीं मिल सका l वही उसकी पराजय का मुख्य कारण रहा l '
कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता निभाई , इस कारण वह भी सेना के साथ था , ईश्वर के संरक्षण से वंचित रह गया l
महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ l महर्षि जरत्कारू के आश्रम में दो शिष्यों में चर्चा चल रही थी कि---- ' कर्ण युद्ध विद्दा में अर्जुन से श्रेष्ठ थे , दानियों में भी अग्रगण्य थे , आत्मबल के धनी थे , फिर भी क्यों अर्जुन से हार गए ? गुरदेव ने स्पष्ट किया ---- ' अर्जुन को नर और कृष्ण को नारायण कहा गया है l नर - नारायण का जोड़ा ही असुरता से जीतता है l
कर्ण अर्जुन की अपेक्षा श्रेष्ठ नर भले हो , पर उसने अपने आपको ही सब कुछ माना , नारायण को पूरक नहीं बनाया , इसलिए पूरक सत्ता का लाभ उसे नहीं मिल सका l वही उसकी पराजय का मुख्य कारण रहा l '
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