धर्म ही वह तत्व है जिसके कारण मनुष्य आकृति के साथ - साथ प्रकृति से भी मनुष्य बन पाता है l धर्म के अभाव में मनुष्य , मनुष्य जैसा दिख अवश्य सकता है , पर मनुष्य हो नहीं सकता l
धर्म को धारण करने वाला व्यक्ति सदा - सदा के लिए अजेय व अभय हो जाता है l ऐसे व्यक्ति की प्रतिभा और पुरुषार्थ से सारी वसुधा निहाल होती है , वे व्यक्ति और समाज को ऊँचा उठाने में अपनी सारी शक्तियां लगा देते हैं l
एक बार साम्यवादी विचारधारा के एक पाश्चात्य विद्वान महात्मा गाँधी के पास जा कर बोले ---- ----" महात्माजी ! जब संसार में इतना छल - कपट , अशांति और खून - खराबा चल रहा है , तब भी आप धर्म की बात करते हैं l बुराइयाँ और रक्तपात जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं , उसे देखते हुए धर्म निहायत बेकार चीज है l "
बापू ने कहा --- " महोदय ! जरा सोचिये तो सही कि जब धर्म की मान्यता रहते हुए लोग इतनी अशांति फैलाये हुए हैं , तो उसके न रहने पर यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि तब संसार की क्या दशा होगी ? " इस पर उन सज्जन से कोई जवाब देते नहीं बना l
महात्मा गाँधी ने अपना सम्पूर्ण जीवन सत्य की प्रयोगशाला बना दिया था l सेवा , परोपकार और प्रार्थना का उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था और इन्ही भावनाओं के कारण वे आजीवन अहिंसा के धर्म का पालन कर सके l
धर्म को धारण करने वाला व्यक्ति सदा - सदा के लिए अजेय व अभय हो जाता है l ऐसे व्यक्ति की प्रतिभा और पुरुषार्थ से सारी वसुधा निहाल होती है , वे व्यक्ति और समाज को ऊँचा उठाने में अपनी सारी शक्तियां लगा देते हैं l
एक बार साम्यवादी विचारधारा के एक पाश्चात्य विद्वान महात्मा गाँधी के पास जा कर बोले ---- ----" महात्माजी ! जब संसार में इतना छल - कपट , अशांति और खून - खराबा चल रहा है , तब भी आप धर्म की बात करते हैं l बुराइयाँ और रक्तपात जितनी तेजी से बढ़ रहे हैं , उसे देखते हुए धर्म निहायत बेकार चीज है l "
बापू ने कहा --- " महोदय ! जरा सोचिये तो सही कि जब धर्म की मान्यता रहते हुए लोग इतनी अशांति फैलाये हुए हैं , तो उसके न रहने पर यह कल्पना सहज ही की जा सकती है कि तब संसार की क्या दशा होगी ? " इस पर उन सज्जन से कोई जवाब देते नहीं बना l
महात्मा गाँधी ने अपना सम्पूर्ण जीवन सत्य की प्रयोगशाला बना दिया था l सेवा , परोपकार और प्रार्थना का उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था और इन्ही भावनाओं के कारण वे आजीवन अहिंसा के धर्म का पालन कर सके l
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