मनुष्य जीवन तो पानी का बुलबुला है l वह पैदा भी होता है और मर भी जाता है l किन्तु शाश्वत रहते हैं उसके कर्म और विचार l मनुष्य के विचार ही उसका वास्तविक स्वरुप होते हैं l ये विचार ही नए - नए मस्तिष्क में घुसकर ह्रदय में प्रभाव जमाकर मनुष्य को देवता बना देते हैं और राक्षस भी l जैसे विचार होंगे , मनुष्य वैसा ही बनता जायेगा l
चीन में कुंग फुत्ज़ के दो सौ वर्ष पश्चात् एक राजा ने उनके विचारों , उनकी शिक्षाओं को नष्ट करने का प्रयास किया l उनकी लिखी पुस्तकें , उनके उपदेश व शिक्षाओं के संग्रह उसने जला दिए l जो लोग उनके मतानुयायी थे और प्रचार करते थे उन्हें उसने मौत के घाट उतार दिया l फिर भी कुंग फुत्ज़ के विचार मरे नहीं , वे और जीवंत हो उठे l उनके उपदेश लोगों के मन में , मस्तिष्क में , ह्रदय और अंत: करण में उतरा l बाद के सम्राटों ने उन विचारों को स्वीकारा l 1912 तक उनके द्वारा चलाया गया धर्म चीन का राजधर्म था l आज भी चीन में करोड़ों व्यक्तियों को उनके उपदेश कंठस्थ हैं l यह है विचारों का अमृतत्व l
चीन में कुंग फुत्ज़ के दो सौ वर्ष पश्चात् एक राजा ने उनके विचारों , उनकी शिक्षाओं को नष्ट करने का प्रयास किया l उनकी लिखी पुस्तकें , उनके उपदेश व शिक्षाओं के संग्रह उसने जला दिए l जो लोग उनके मतानुयायी थे और प्रचार करते थे उन्हें उसने मौत के घाट उतार दिया l फिर भी कुंग फुत्ज़ के विचार मरे नहीं , वे और जीवंत हो उठे l उनके उपदेश लोगों के मन में , मस्तिष्क में , ह्रदय और अंत: करण में उतरा l बाद के सम्राटों ने उन विचारों को स्वीकारा l 1912 तक उनके द्वारा चलाया गया धर्म चीन का राजधर्म था l आज भी चीन में करोड़ों व्यक्तियों को उनके उपदेश कंठस्थ हैं l यह है विचारों का अमृतत्व l
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