ईश्वर ने मनुष्यों को अनेक विभूति सौंपी है , आवश्यकता है उनको विकसित करने की l
स्त्रियों में भगवान की सर्वाधिक विभूतियाँ हैं , इन विभूतियों के विकसित होने पर ही दुनिया में संतुलन व सौन्दर्य प्रकट होगा l ----
भगवान कहते हैं ----- स्त्रियों में मैं कीर्ति हूँ l कीर्ति का मतलब ऐसी नारी , जिसके व्यक्तित्व से वासना की झंकार नहीं निकलती l ऐसा होने पर उसे एक अनूठा सौन्दर्य उपलब्ध होता है और वही सौन्दर्य उसका यश है , उसकी कीर्ति है l
इसके बाद भगवान कहते हैं ---- स्त्रियों की श्री मैं ही हूँ l श्री स्त्री का आत्मिक सौन्दर्य है , उसकी दिव्यता की अभिव्यक्ति l श्री का सौन्दर्य अलौकिक है , अपार्थिव है l
इसके बाद स्त्रियों के एक अन्य गुण ' वाक् ' को भगवन अपना स्वरुप बताते हैं l जब स्त्री अपने अस्तित्व में परम मौन को उपलब्ध होती है तब उसकी वाणी ' वाक् ' बनती है , जिससे मन्त्र प्रकट होते हैं l यह मौन की गरिमा है l
वाक् के बाद स्त्री के एक अन्य गुण को भगवन अपना स्वरुप कहते हैं , वह गुण है ---- स्मृति l
स्त्री के लिए स्मृति उसकी बुद्धि का हिस्सा नहीं है , बल्कि अस्तित्व की सम्पूर्णता है l
इसके बाद ' मेधा ' को भगवन अपनी विभूति बताते हैं l मेधा के बल पर ही संवेदना और सृजन को स्त्री धारण करती है l
इसके पश्चात् धृति को भगवन अपना स्वरुप बताते हैं l धृति का अर्थ है --- धीरज , धैर्य , स्थिरता l स्त्री का धैर्य , उसकी सहने की क्षमता अनंत है , इसलिए प्रकृति ने उसे माँ का गौरव दिया है l
इसके पश्चात् स्त्री का अगला गुण है -- क्षमा , जिसे भगवन अपनी विभूति कहते हैं l स्त्री में जितना प्रेम है , उतनी ही क्षमा है l
ये सब विभूतियाँ जब तक विकसित नहीं होती , तब तक दुनिया असंतुलित रहेगी l
स्त्रियों में भगवान की सर्वाधिक विभूतियाँ हैं , इन विभूतियों के विकसित होने पर ही दुनिया में संतुलन व सौन्दर्य प्रकट होगा l ----
भगवान कहते हैं ----- स्त्रियों में मैं कीर्ति हूँ l कीर्ति का मतलब ऐसी नारी , जिसके व्यक्तित्व से वासना की झंकार नहीं निकलती l ऐसा होने पर उसे एक अनूठा सौन्दर्य उपलब्ध होता है और वही सौन्दर्य उसका यश है , उसकी कीर्ति है l
इसके बाद भगवान कहते हैं ---- स्त्रियों की श्री मैं ही हूँ l श्री स्त्री का आत्मिक सौन्दर्य है , उसकी दिव्यता की अभिव्यक्ति l श्री का सौन्दर्य अलौकिक है , अपार्थिव है l
इसके बाद स्त्रियों के एक अन्य गुण ' वाक् ' को भगवन अपना स्वरुप बताते हैं l जब स्त्री अपने अस्तित्व में परम मौन को उपलब्ध होती है तब उसकी वाणी ' वाक् ' बनती है , जिससे मन्त्र प्रकट होते हैं l यह मौन की गरिमा है l
वाक् के बाद स्त्री के एक अन्य गुण को भगवन अपना स्वरुप कहते हैं , वह गुण है ---- स्मृति l
स्त्री के लिए स्मृति उसकी बुद्धि का हिस्सा नहीं है , बल्कि अस्तित्व की सम्पूर्णता है l
इसके बाद ' मेधा ' को भगवन अपनी विभूति बताते हैं l मेधा के बल पर ही संवेदना और सृजन को स्त्री धारण करती है l
इसके पश्चात् धृति को भगवन अपना स्वरुप बताते हैं l धृति का अर्थ है --- धीरज , धैर्य , स्थिरता l स्त्री का धैर्य , उसकी सहने की क्षमता अनंत है , इसलिए प्रकृति ने उसे माँ का गौरव दिया है l
इसके पश्चात् स्त्री का अगला गुण है -- क्षमा , जिसे भगवन अपनी विभूति कहते हैं l स्त्री में जितना प्रेम है , उतनी ही क्षमा है l
ये सब विभूतियाँ जब तक विकसित नहीं होती , तब तक दुनिया असंतुलित रहेगी l
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