विश्वकवि रवीन्द्रनाथ टैगोर की बढ़ती हुई प्रतिभा व लोकप्रियता से लोग ईर्ष्या करने लगे l उन्होंने गुरुदेव की छवि को धूमिल करने के लिए विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं के माध्यम से अपने कलुषित प्रयास आरम्भ कर दिए l परन्तु वे समभाव से सब सहन करते रहे तथा तनिक भी विचलित नही हुए l श्री शरतचंद्र को जब यह आलोचना सहन नहीं हुईं तो उन्होंने गुरुदेव से कहा कि वे इन आलोचकों को रोकने का कुछ प्रयास करें l गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उन्हें शांत भाव से समझाया , प्रयास क्या करूँ ? मैं उन जैसा नहीं बन सकता व उन्होंने जो मार्ग अपनाया है , वह भी मैं नहीं अपना सकता l
महाकवि रवीन्द्रनाथ ने अपनी रचनाओं द्वारा संसार में भारतीय संस्कृति का मान बढ़ाया l उन्होंने विश्व भ्रमण किया l वे जहाँ भी गए उन्हें बहुत सम्मान मिला l नोबेल पुरस्कार और विश्व भ्रमण आदि से उन्हें जितना भी धन मिला उसे शान्ति निकेतन की स्थापना में लगाया l
महाकवि रवीन्द्रनाथ ने अपनी रचनाओं द्वारा संसार में भारतीय संस्कृति का मान बढ़ाया l उन्होंने विश्व भ्रमण किया l वे जहाँ भी गए उन्हें बहुत सम्मान मिला l नोबेल पुरस्कार और विश्व भ्रमण आदि से उन्हें जितना भी धन मिला उसे शान्ति निकेतन की स्थापना में लगाया l
No comments:
Post a Comment