हमारे धर्म ग्रन्थ हमें जीवन जीना सिखाते हैं l श्रीरामचरितमानस में प्रसंग है --- महारानी कैकेयी ने राजा दशरथ से दो वर मांगे ---- राम को वनवास और भारत को राजगद्दी l तुलसीदासजी कहते हैं कि उन दिनों अयोध्या में सब तरफ भरत और कैकेयी का अपयश फैला था l भरत को कलंक मिला , लोक निंदा मिली l उसी समय पिता दशरथ का स्वर्गवास हो गया था l परिस्थितियां प्रतिकूल थी l उस अपयश के बीच में स्थिर रहना , अपने क्रोध पर , क्षोभ पर नियंत्रण बनाये रखना बड़ा कठिन था l लेकिन भरत ने आत्म नियंत्रण नहीं खोया , न ही किसी से बैर निभाने की सोची l ऐसी परिस्थिति में शांत रहे l
भरतजी जब राम को मनाने चित्रकूट जा रहे थे तो कोल - भीलों ने श्रीराम को खबर दी --- महाराज ! ऐसा लगता है कि कोई बड़ी सेना इधर बढ़ती चली l लोग कहते हैं कि अयोध्या की सेना है l लक्ष्मण युद्ध की तैयारी करने लगे l भरत को यह सूचना मिली कि लक्ष्मणजी धनुष बाण लेकर उन्हें मारने आ रहे हैं , तब भी वे विचलित नहीं हुए , उनका विवेक डिगा नहीं l
भरतजी में लालच , अहंकार नहीं था l राजगद्दी उन्हें मिल रही थी , उनका अपनी कामनाओं पर नियंत्रण था l l उनका चरित्र प्रेरणादायक है l
भरतजी जब राम को मनाने चित्रकूट जा रहे थे तो कोल - भीलों ने श्रीराम को खबर दी --- महाराज ! ऐसा लगता है कि कोई बड़ी सेना इधर बढ़ती चली l लोग कहते हैं कि अयोध्या की सेना है l लक्ष्मण युद्ध की तैयारी करने लगे l भरत को यह सूचना मिली कि लक्ष्मणजी धनुष बाण लेकर उन्हें मारने आ रहे हैं , तब भी वे विचलित नहीं हुए , उनका विवेक डिगा नहीं l
भरतजी में लालच , अहंकार नहीं था l राजगद्दी उन्हें मिल रही थी , उनका अपनी कामनाओं पर नियंत्रण था l l उनका चरित्र प्रेरणादायक है l
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