अर्जुन महाभारत के महासमर से भागना व बचना चाहते थे l भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें समझाया ---- ऐसा कर के तुम कहीं भी चैन से न बैठ सकोगे l पाप को हम न मारें , अधर्म , अनीति का संहार हम न करें , तो निर्विरोध स्थिति पाकर ये पाप , अधर्म , अनीति हमें , हमारी सामाजिक व्यवस्था को मार डालेंगे l इसलिए जीवित रहने पर सुख और मरने पर स्वर्ग का उभयपक्षीय लाभ समझाते हुए उन्हें उठ खड़े होने का उद्बोधन देते हैं l आना - कानी की स्थिति आने पर उन्होंने अर्जुन को अनुशासनात्मक निर्देश दिया ---- ' युद्धाय कृतनिश्चय: ' अर्थात अर्थात निश्चित रूप से युद्ध करना ही चाहिए l
कायरता का त्याग अनिवार्य है l
नीतिशास्त्र में साम की तरह दंड को भी औचित्य की संज्ञा दी गई है l समझाने और सज्जनता की नीति हमेशा सफल नहीं होती l दुष्टता को भय की भाषा ही समझ में आती है l
गुरु गोविन्दसिंह ने अपने समय की दुर्दशा का कारण जन - समाज की आंतरिक भीरुता को ही माना l उनका निष्कर्ष था कि जब तक जन आक्रोश न जागेगा , शौर्य व साहस की पुन: प्राण प्रतिष्ठा न होगी , तब तक पद दलित स्थिति से उबरने का अवसर न मिलेगा l
कायरता का त्याग अनिवार्य है l
नीतिशास्त्र में साम की तरह दंड को भी औचित्य की संज्ञा दी गई है l समझाने और सज्जनता की नीति हमेशा सफल नहीं होती l दुष्टता को भय की भाषा ही समझ में आती है l
गुरु गोविन्दसिंह ने अपने समय की दुर्दशा का कारण जन - समाज की आंतरिक भीरुता को ही माना l उनका निष्कर्ष था कि जब तक जन आक्रोश न जागेगा , शौर्य व साहस की पुन: प्राण प्रतिष्ठा न होगी , तब तक पद दलित स्थिति से उबरने का अवसर न मिलेगा l
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