यह बात विचार करने की है कि हमने अपनी जिन्दगी में जो कुछ भी किया , जिस दिन जीवन का अंत होगा , उसमे से कितना सार्थक रह जायेगा l आज संसार में अनेक लोग ऐसे हैं जो निरर्थक कामों जैसे ताश खेलना , शराब पीना , षड्यंत्र रचना आदि में समय गँवा देते हैं और स्वाध्याय , सत्संग आदि ऐसे कार्य जिनसे स्वयं के जीवन का निर्माण होता है , उसके लिए उनके पास समय नहीं है l भौतिक तरक्की के साथ आत्मिक विकास जरुरी है l
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