भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को यह सच समझा रहे हैं कि जहाँ भी श्रेष्ठता का फूल खिलता है , वहां मेरी ही उपस्थिति है l इस क्रम में वे स्वयं को दमन करने वालों का दंड घोषित करते हैं l
आज हरेक दूसरे को दबाना चाहता है l थोड़ी सी ताकत का एहसास हुआ कि व्यक्ति औरों को दबाने का , उनको दमित करने का ख्वाब देखने लगता है l संसार में , शासन में , समाज में और घरेलू जिन्दगी में दमन के , दूसरे को दबाने के , दंड देने के सैकड़ों उदाहरण मिल जाते हैं l यह दमन पाशविक है , नीतिहीन है , पशुता है l ऐसे में जब भगवान स्वयं को दमन की शक्ति कहते हैं तो यहाँ ईश्वरीय भाव है -- अन्याय , अनीति , अत्याचार , अनाचार , दुराचार , शोषण , भ्रष्टाचार का दमन किया जाता है , तो दमन ईश्वरीय विभूति बनता है और जो इसे करने का साहस दिखाते हैं , दंड उनके हाथों में ईश्वरीय शक्ति के रूप में सुशोभित होता है l
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