वर्ष 1576 राजस्थान के हल्दीघाटी नामक पर्वतीय क्षेत्र में मुगलों और राजपूतों की सेना में भयंकर युद्ध हुआ l आमेर के राजा मानसिंह और महाराणा प्रताप का सगा भाई शक्तिसिंह भी मुगलों का ही सहायक था l इस युद्ध में उनका घोड़ा चेतक बुरी तरह घायल हो गया था फिर भी वह अपने स्वामी को उबड़- खाबड़ पहाड़ी भूमि में तेजी से ले जा रहा था l रास्ते में नदी थी , बहुत घायल होने पर भी चेतक महाराणा को लेकर नदी के उस पार पहुँच गया l अभी तक युद्ध की तीव्रता और जोश के कारण वह घायल होने पर भी तीव्रता से दौड़ता रहा , पर अब महाराणा के नीचे उतर जाने पर उसका शरीर शिथिल होकर भूमि पर गिर पड़ा l अपने स्वामी को सुरक्षित स्थान में पहुंचाकर उनके मुख की तरफ देखते हुए उसने प्राण त्याग दिए l अपनी रक्षा करने वाले चेतक को इस तरह परलोक जाता देख प्रताप का ह्रदय रो उठा l उन्होंने चेतक के मस्तक को अपनी गोद में रख लिया l महाराणा प्रताप की देशभक्ति और कर्तव्य परायणता के साथ उनके घोड़े की अपूर्व स्वामिभक्ति देख कर शक्तिसिंह का भी ह्रदय परिवर्तन हुआ , उसने अब उनसे लड़ने की बजाय उनके कदमों में अपना मस्तक रख दिया l कुछ दिन बाद राणा ने चेतक के प्राण त्याग करने के स्थान पर एक स्तम्भ बनवा दिया जो अभी तक मौजूद है l
अपना कर्तव्य इतनी निष्ठा के साथ पालन करने से पशु होते हुए भी चेतक का नाम इतिहास में अमर हो गया l
अपना कर्तव्य इतनी निष्ठा के साथ पालन करने से पशु होते हुए भी चेतक का नाम इतिहास में अमर हो गया l
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