इनसान चाहे वह स्त्री हो या पुरुष , एक इनसान ही है , वस्तु नहीं , जिसका जब चाहे इस्तेमाल कर लिया जाये l इनसान है तो उसके भीतर सब प्रकार की भावनाएं हैं l
शोषण की मानसिकता है कि दूसरे की कमियों का लाभ उठाकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग करो और अनुपयोगी होने पर उसे उठा कर फेंक दिया जाये l शोषण के साथ एक प्रकार की क्रूरता का भाव है , जिसमे मानवीय संवेदनशीलता और सहकारिता का कोई स्थान नहीं है l यही सिद्धांत आज आज परिवार , समाज , संस्थाएं , राजनीति आदि विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता नजर आता है l शोषण से विकार उत्पन्न होते हैं , इससे ही सम्पूर्ण समाज में अशांति उत्पन्न होती है l
शोषण के विपरीत यदि पोषण हो , तभी किसी देश का सही अर्थों में विकास होगा l यह पोषण कई तरीके से हो सकता है जैसे कोई आर्थिक रूप से कमजोर है तो उसे स्वावलंबी बनाने के लिए विभिन्न उपाय करना , प्रशिक्षण देना आर्थिक पोषण है l एक दूसरे की कमियों , कमजोरियों का फायदा न उठाकर संवेदनशील ढंग से उनका समाधान करना ही मानवता है l
आज के समय में दुर्बुद्धि के कारण , तुरंत लाभ पाने के लिए लोग अन्यायी का , गलत राह पर चलने वाले का साथ निभाते हैं l यह सहयोग नहीं है l सद्गुणों में नैतिकता की प्रधानता होती है l
शोषण की मानसिकता है कि दूसरे की कमियों का लाभ उठाकर उसे सदा नियंत्रण में रखो और अपना हित साधने के लिए उसका उपयोग करो l जब तक वह उपयोगी है , तब तक उसका उपयोग करो और अनुपयोगी होने पर उसे उठा कर फेंक दिया जाये l शोषण के साथ एक प्रकार की क्रूरता का भाव है , जिसमे मानवीय संवेदनशीलता और सहकारिता का कोई स्थान नहीं है l यही सिद्धांत आज आज परिवार , समाज , संस्थाएं , राजनीति आदि विभिन्न क्षेत्रों में कार्य करता नजर आता है l शोषण से विकार उत्पन्न होते हैं , इससे ही सम्पूर्ण समाज में अशांति उत्पन्न होती है l
शोषण के विपरीत यदि पोषण हो , तभी किसी देश का सही अर्थों में विकास होगा l यह पोषण कई तरीके से हो सकता है जैसे कोई आर्थिक रूप से कमजोर है तो उसे स्वावलंबी बनाने के लिए विभिन्न उपाय करना , प्रशिक्षण देना आर्थिक पोषण है l एक दूसरे की कमियों , कमजोरियों का फायदा न उठाकर संवेदनशील ढंग से उनका समाधान करना ही मानवता है l
आज के समय में दुर्बुद्धि के कारण , तुरंत लाभ पाने के लिए लोग अन्यायी का , गलत राह पर चलने वाले का साथ निभाते हैं l यह सहयोग नहीं है l सद्गुणों में नैतिकता की प्रधानता होती है l
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