आचार्यजी का मत है कि मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु असंयम है l शक्ति तथा सम्पन्नता का लाभ तभी मिलता है जब उसका सदुपयोग बन पड़े l दुरूपयोग होने पर तो अमृत भी विष बन जाता है l माचिस जैसी छोटी और उपयोगी वस्तु अपना तथा पड़ोसियों का घरवार भस्म कर सकती है l इस दुर्गुण के रहते कुबेर का खजाना भी खाली हो सकता है l ईश्वर प्रदत्त सामर्थ्यों का सदुपयोग कर सकने की सूझ - बूझ एवं संकल्प शक्ति को ही मर्यादा पालन एवं संयमशीलता कहते हैं l
लम्बे अन्तराल के बाद शुभ वाक्य लेखक को नमन!
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