चिंता व्यक्ति को तभी होती है , जब वह खाली बैठा होता है , उसके पास करने के लिए कोई महत्वपूर्ण काम नहीं होता l चिंता व्यक्ति को चिता की तरह सुलगाती है , घुन की तरह शरीर में लग कर उसे कमजोर व निकम्मा बना देती है l चिंता करने के दौरान अत्याधिक मानसिक ऊर्जा का क्षरण होता है l
इसका समाधान है -- विवेक पूर्ण विचार करना , और सोचे गए विचार और योजनाओं पर कार्य करना l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था ---- " व्यस्त रहो ---- मस्त रहो l "
जो जीवन को सच्चिन्तन और सत्कर्मों में लगते हैं , वे न केवल मस्त रहते हैं , बल्कि आंतरिक और बही रूप से इतने आनंदमय रहते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले भी अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं l
इसका समाधान है -- विवेक पूर्ण विचार करना , और सोचे गए विचार और योजनाओं पर कार्य करना l पं. श्रीराम शर्मा आचार्य जी का कहना था ---- " व्यस्त रहो ---- मस्त रहो l "
जो जीवन को सच्चिन्तन और सत्कर्मों में लगते हैं , वे न केवल मस्त रहते हैं , बल्कि आंतरिक और बही रूप से इतने आनंदमय रहते हैं कि उनके संपर्क में आने वाले भी अपनी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं l
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