बंकिम बाबू साहित्य - संसार में विशेष रूप से ' उपन्यासकार ' की हैसियत से प्रसिद्ध हुए l जिस उपन्यास के कारण उनका नाम देशभक्तों में अमर हो गया , वह है -- ' आनंदमठ ' l इस उपन्यास के माध्यम से उन्होंने नवयुवकों के सामने विदेशी राज्य शक्ति के विरुद्ध खड़े होने का एक आदर्श प्रस्तुत किया l इस उपन्यास में एक मठ के संन्यासियों ने देश की रक्षा के लिए शत्रुओं से लड़ाई की और इन साधुओं का मन्त्र था --- ' वंदेमातरम् ' l
इसमें जगह - जगह वार्तालाप के द्वारा समाज - सेवा की प्रेरणा दी गई है l मठ का एक संन्यासी -- भवानंद , महेंद्रसिंह नाम के बड़े जमीदार को देश सेवा के लिए प्रेरणा देते हुए कहता है --- " महेंद्रसिंह , मेरी धारणा थी कि तुम में कुछ वास्तविक मनुष्यत्व होगा , पर अब देखता हूँ सब जैसे हैं वैसे ही तुम भी हो l देखो , सांप जमीन पर छाती के बल रेंगता है , पर उस पर पैर पड़ जाने से वह भी फन उठाकर काटने को दौड़ता है l क्या तुमको किसी तरह धर्म और देश की दुर्दशा दिखाई नहीं देती , घर में लड़की - बहु की इज्जत का ठिकाना नहीं , धर्म गया , जाति गई , मान गया , अब तो प्राण भी जा रहे हैं l "
एक समय था जब अंग्रेज अधिकारी इस पुस्तक से ऐसे डरते थे जैसे बम के गोले से l उस समय आजादी के दीवाने इस पुस्तक को गुप्त रूप से पढ़ते थे l बंकिम बाबू ने स्वयं उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि " एक दिन ' वन्दे मातरम् ' की ध्वनि से सारा भारत गूंज उठेगा l
इसमें जगह - जगह वार्तालाप के द्वारा समाज - सेवा की प्रेरणा दी गई है l मठ का एक संन्यासी -- भवानंद , महेंद्रसिंह नाम के बड़े जमीदार को देश सेवा के लिए प्रेरणा देते हुए कहता है --- " महेंद्रसिंह , मेरी धारणा थी कि तुम में कुछ वास्तविक मनुष्यत्व होगा , पर अब देखता हूँ सब जैसे हैं वैसे ही तुम भी हो l देखो , सांप जमीन पर छाती के बल रेंगता है , पर उस पर पैर पड़ जाने से वह भी फन उठाकर काटने को दौड़ता है l क्या तुमको किसी तरह धर्म और देश की दुर्दशा दिखाई नहीं देती , घर में लड़की - बहु की इज्जत का ठिकाना नहीं , धर्म गया , जाति गई , मान गया , अब तो प्राण भी जा रहे हैं l "
एक समय था जब अंग्रेज अधिकारी इस पुस्तक से ऐसे डरते थे जैसे बम के गोले से l उस समय आजादी के दीवाने इस पुस्तक को गुप्त रूप से पढ़ते थे l बंकिम बाबू ने स्वयं उसी समय यह भविष्यवाणी कर दी थी कि " एक दिन ' वन्दे मातरम् ' की ध्वनि से सारा भारत गूंज उठेगा l
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