डॉ. मार्टिन लूथर किंग ( 1929 - 1968) ने अपने जीवन के आरम्भ से ही देखा था कि अमेरिका में गोरे लोग नीग्रो - जनों के साथ कैसा अन्यायपूर्ण और अपमानजनक व्यवहार करते हैं l उनको यह विश्वास हो गया था कि जातिगत - अन्याय और आर्थिक - अन्याय दोनों आपस में मिले - जुले चलते हैं l उन्होंने जब महात्मा गाँधी के सत्याग्रह आन्दोलन के विषय में सुना और कितनी पुस्तकें पढ़कर उसका अच्छी तरह अध्ययन किया , तब उन्होंने समझ लिया कि हम शांतिपूर्ण और द्वेष रहित उपायों से भी दुष्ट प्रकृति के लोगों का प्रतिकार कर सकते हैं l सर्वोदय आन्दोलन के एक कार्यकर्ता श्री सतीशकुमार जब शान्ति-प्रचार के सम्बन्ध में अमेरिका गए थे तो वहां श्री किंग से भी मिले l उनसे प्रश्न किया गया कि ' आपके अहिंसात्मक नीग्रो आन्दोलन पर गांधीजी का प्रभाव कहाँ तक है ? ' तो उन्होंने कहा ---- " एक हद तक गांधीजी मेरी प्रेरणा हैं l उनके सत्याग्रह तरीकों को जब मैंने पढ़ा , तब मुझे लगा , मानो मेरे मन की बात को किसी ने भाषा दे दी हो l नीग्रो - स्वातंत्र्य की प्राप्ति के लिए गांधीजी का तरीका एक कारगर हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है l इसका सक्रिय अनुभव मुझे तब हुआ जब मौंटगुमरी में हमने इस हथियार का द्रढ़ता पूर्वक प्रयोग किया और सफलता पाई l "
श्री किंग ने अपनी 1959 की भारत यात्रा का जिक्र करते हुए कहा ---- " उस धरती पर जाना जहाँ गांधीजी ने जीवन बिताया , एक तीर्थ यात्रा के समान ही था l उन लोगों से मिलना और बात करना जिन्होंने गांधीजी के साथ काम किया , मेरे लिए असाधारण आनंद की बात थी l यदि अहिंसात्मक सिद्धांतों के बल पर एक देश राजनीतिक आजादी प्राप्त कर सकता है तो हम नीग्रो सामाजिक आजादी और नागरिक समानता प्राप्त करने के लिए उन्ही सिद्धांतों पर क्यों न चलें ? इस विचार ने मेरे जीवन को ही बदल डाला l इसलिए मैं अपने ऊपर भारत का महान उपकार मानता हूँ l "
श्री किंग को 1964 का ' शान्ति नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तब उन्होंने कहा --- " सभ्यता और हिंसा परस्पर विरोधी विचार हैं ---- अहिंसा निष्क्रियता का नाम नहीं है , वरन वह एक ऐसी प्रबल नैतिक शक्ति , जो सामाजिक कायापलट कर देती है -------- " l
श्री किंग ने अपनी 1959 की भारत यात्रा का जिक्र करते हुए कहा ---- " उस धरती पर जाना जहाँ गांधीजी ने जीवन बिताया , एक तीर्थ यात्रा के समान ही था l उन लोगों से मिलना और बात करना जिन्होंने गांधीजी के साथ काम किया , मेरे लिए असाधारण आनंद की बात थी l यदि अहिंसात्मक सिद्धांतों के बल पर एक देश राजनीतिक आजादी प्राप्त कर सकता है तो हम नीग्रो सामाजिक आजादी और नागरिक समानता प्राप्त करने के लिए उन्ही सिद्धांतों पर क्यों न चलें ? इस विचार ने मेरे जीवन को ही बदल डाला l इसलिए मैं अपने ऊपर भारत का महान उपकार मानता हूँ l "
श्री किंग को 1964 का ' शान्ति नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ तब उन्होंने कहा --- " सभ्यता और हिंसा परस्पर विरोधी विचार हैं ---- अहिंसा निष्क्रियता का नाम नहीं है , वरन वह एक ऐसी प्रबल नैतिक शक्ति , जो सामाजिक कायापलट कर देती है -------- " l
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