संत सुकरात ने अपना गृहस्थ जीवन सुख - दुःख और असुविधाओं की परवाह न कर के अच्छी तरह निबाहा l जो लोग जरा -जरा सी बात पर तलाक की तैयारी करने लगते हैं , अथवा अपने जीवन का अंत कर के झंझटों से छुटकारे की कोशिश करते हैं , उनके लिए एक उत्तम उदाहरण छोड़ा है ------ एक बार सुकरात की पत्नी जेथिपी ने बाजार में ही सुकरात से झगड़ा किया और उसका कोट फाड़ डाला l यह देखकर सुकरात के मित्र बड़े नाराज हुए और उन्होंने कहा कि जेथिप्पी को इसका दंड अवश्य दिया जाना चाहिए l पर सुकरात ने कहा ---- " जिस प्रकार सईस दुष्ट घोड़े के साथ रहकर उन्हें ठीक करने का प्रयत्न करते हैं उसी प्रकार मैं भी एक चिड़चिडे स्वभाव वाली स्त्री के साथ रहता हूँ l और जिस प्रकार यदि वह सईस उस दुष्ट घोड़े पर काबू पा लेता है तो अन्य घोड़ों को तो आसानी से वश में रख सकता है , उसी प्रकार जेथिप्पी के दुर्व्यवहार का मुकाबला करता हुआ मैं समस्त संसार का सामना करने का अभ्यास करता हूँ l "
एक बार सुकरात के किसी मित्र ने इस प्रकार की घटनाओं को देखकर कहा कि --- " जेथिप्पी का व्यवहार असहनीय है , आप उसे कैसे बर्दाश्त करते हैं ? " सुकरात ने कहा ---- ' जिस प्रकार आप अपनी पालतू बतखों की घें - घें को सुनते रहते हैं उसी प्रकार मैं भी उसकी बातों को सुनने का अभ्यस्त हो गया हूँ l ' मित्र ने कहा --- " परन्तु बतखें तो मुझे अंडे और बच्चे देती हैं l "
सुकरात ने कहा ---- " जेथिप्पी भी मेरे बच्चों की माँ है l "
एक बार सुकरात के किसी मित्र ने इस प्रकार की घटनाओं को देखकर कहा कि --- " जेथिप्पी का व्यवहार असहनीय है , आप उसे कैसे बर्दाश्त करते हैं ? " सुकरात ने कहा ---- ' जिस प्रकार आप अपनी पालतू बतखों की घें - घें को सुनते रहते हैं उसी प्रकार मैं भी उसकी बातों को सुनने का अभ्यस्त हो गया हूँ l ' मित्र ने कहा --- " परन्तु बतखें तो मुझे अंडे और बच्चे देती हैं l "
सुकरात ने कहा ---- " जेथिप्पी भी मेरे बच्चों की माँ है l "
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