जब विनोबा भावे ईश्वर का नाम लेकर गरीबों की सहायता के लिए अपील करते थे तो कुछ ऐसे व्यक्ति भी निकल आते थे जो अपने को अनीश्वरवादी कहते थे ल तब विनोबाजी कहते थे --- " जो लोग यह कहते हैं कि हम भगवान को नहीं मानते , वे यह तो कहते हैं कि हम सज्जनता को मानते हैं , मानवता को मानते हैं l हमारे लिए इतना ही बहुत है l कोई आदमी मानवता को माने और भगवान को न माने तो हमें चिंता नहीं है l क्योंकि मानवता को मानना और ईश्वर को मानना हमारी निगाह में एक ही बात है l
वे आस्तिक व्यक्तियों की कमजोरियों को खूब जानते थे l उन्होंने कहा --- " बहुत लोग मानते हैं कि चन्दन लगाने से , माला फेरने से , राम का नाम लेने से , झांझ - मंजीरा लेकर कीर्तन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं l ये सब चीजें अच्छी हो सकती हैं , लेकिन भगवान खुश होते हैं --- ईमानदारी से , सच्चाई से , दया से , सेवा से , प्रेम से l ये गुण हैं तो दूसरी चीजें भी अच्छी हो सकती हैं , ये नहीं तो कुछ नहीं l " आस्तिकता का अर्थ इतना नहीं है कि प्रातःकाल उठकर कुछ भजन कर लिया जाये या मंदिर जाकर भगवान की मूर्ति का दर्शन कर लिया जाये l आवश्यकता तो यह है कि दिनभर अपने समस्त कामों में भगवान के आदेश का ध्यान रखें , उसके विपरीत आचरण न करें l
स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा था --- ' मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन कर लेने और नाम - जप करने के साथ नैतिकता पर चलने और चरित्र को ऊँचा बनाने की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है l
वे आस्तिक व्यक्तियों की कमजोरियों को खूब जानते थे l उन्होंने कहा --- " बहुत लोग मानते हैं कि चन्दन लगाने से , माला फेरने से , राम का नाम लेने से , झांझ - मंजीरा लेकर कीर्तन करने से भगवान प्रसन्न होते हैं l ये सब चीजें अच्छी हो सकती हैं , लेकिन भगवान खुश होते हैं --- ईमानदारी से , सच्चाई से , दया से , सेवा से , प्रेम से l ये गुण हैं तो दूसरी चीजें भी अच्छी हो सकती हैं , ये नहीं तो कुछ नहीं l " आस्तिकता का अर्थ इतना नहीं है कि प्रातःकाल उठकर कुछ भजन कर लिया जाये या मंदिर जाकर भगवान की मूर्ति का दर्शन कर लिया जाये l आवश्यकता तो यह है कि दिनभर अपने समस्त कामों में भगवान के आदेश का ध्यान रखें , उसके विपरीत आचरण न करें l
स्वामी विवेकानन्द ने भी कहा था --- ' मंदिर में जाकर भगवान का दर्शन कर लेने और नाम - जप करने के साथ नैतिकता पर चलने और चरित्र को ऊँचा बनाने की अनिवार्य रूप से आवश्यकता है l
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